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प्रस्तावना.
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लखनेऊके अजायब गृहमैं, अंगरेज सरकारनैं रखा है, इस प्रकार जिन मंदिर जिन मूर्तियोंद्वारा जैनधर्मकी प्राचीनता, अन्य दर्शनियोंके दृष्टि गोचर विश्वास करने योग्य हो रही है, क्यों कि बहुतसै जिनधर्मके द्वेषी जिन धर्मकों विशेष प्राचीन नहीं मानते थे, लेकिन जिन मंदिरोंके प्राचीन प्रादुर्भावसैं उनकों
भी जिनधर्भ प्राचीन है ऐसा मानना पडा है. • इस भरतक्षेत्रमैंकेइयक मत मतांतर 'प्रथम होगये लेकिन उनोंका नाम निशान तक अन्य दर्शनी नहीं जानते, यथा श्वेतांबर भगवती सूत्रमैं गोसालेका कथन है, लेकिन दिगांबर जैनी नामधारकोंके पुराणोमैं उसका नामचिन्ह पर्यंत भी नहीं है, श्वेतांबरोंका ग्रंथ लेख, प्रथम आर्यावर्त रहनेवाले जो बोद्धो. गोसालेकों वीरप्रभसंग दृष्टिसैं देखा था, वे बोद्धग्रंथमैं लिखते हैं, निग्रंथ महावीरका एक शिष्य गोसाल कभी था इस न्याय श्वेतांबरोंका ग्रंथ लेख सत्यप्रतीति करने योग्य है, गोशालेके मतको माननेवाले उसशमय ११ लक्ष श्रीमंत गृहस्थ थे, और महावीर स्वामीके यथार्थ धर्मानुयायी सौराजा और एकलक्ष गुणसठ सहस्रव्रतधारी गृहस्थ श्रीमंत लिखा है, लिखनेका तात्पर्य ऐसा है, इग्यारेलाखके मताध्यक्षका नामचिन्ह तक आर्यावर्त्तमैं नहीं रहा, और जैनतीर्थकरोंकी प्राचीनता और होना अन्य दर्शनियोंमैं क्यों कर प्रगट होगई, सम्यक्त्वधारी श्रावकोंके जिनमंदिर करानेके प्रभावसैं इसप्रकार गोशाले आदिपूर्व मतांतरियोंके गृहस्थ मंदिरमूर्ति बनवाते तो, इससमय उनोंका होना अन्य दर्शनी भी स्वीकारते, ऋषभदेव के शमय पर्यंतकी भी मर्तियां अद्यावधि मिलती है, क्योंके निर्विवाद सिद्ध है, जैनगृहस्थ असंक्षकालसैं जिनमदिर, जिनमूर्ति कराते चले आये, [ प्रष्ण ] जिनमंदिर जिनमूर्ति, पुनःउसकी पूजामैं जल, पुष्प, अग्नि, फलादि आरोपण करना, हिंसा है, और हिंसाका कृत्य जिनधर्मी श्रावक कैसे करे, [ उत्तर ] हे भव्य यह तो तुमभी बुद्धिसैं निर्धार कर सक्ते हो, विना तीर्थ करके भक्त श्रद्धानवाले विना जिनमंदिर कोन करावेगा,
और वेही जिनमंदिर कराते चले आये हैं, और तीर्थकरके भक्त श्रद्धावंतकों, मिथ्यात्वी कहे, वह मिथ्यात्वी जिनाज्ञाका विराधक होता है तुम विचार लो तीर्थ करकी श्रद्धा भक्ति मिथ्यात्वीको कैसे हो सके, जिनमंदिरोंके करानेवाले निश्चय सम्यक्त्ववंत सिद्ध होते हैं, मिथ्यात्वी वोही कहाता है जो तीर्थकरसैं वे मुख हो, अब रही ये कुतर्क की, पूर्वोक्त विधिमैं हिंसा है, सो स्वरूपहिंसा यत्किंचित् एकेंद्री जीवोंकी दिखती है जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, कराने, वा पूजामैं, तबतो तुमलोकोनैं उपवास, बेला, तेला अठाई, पक्ष, मासक्षमणादि तपस्याकों भी त्यागदेना चाहिये, इस मनुष्य देहधारीके शरीरमैं, बेइंद्री, तेंद्री, त्रसजीव भी असंक्ष है चूरणिये,