Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 13
________________ . प्रस्तावना.. . फोजदारीका कायदा क्या कर सकता, अपने पिताकों पिता भावसैं न माननीय करे, तो उसका, प्रतीकार कायदेमैं क्या है, लोकीक मैं वह प्रशंसा पात्र नहीं कृतघ्नीयोंका, शिरोमणि कहाता है, - उन गुरुदेवके शंतान जती साधुओं नैं जिनधर्मपर महान् आपत्तियां अत्याचारीयोंने डाली, उसको स्वशक्त्यानुसार निवर्तनकर लाखों जैन शास्त्र भंडार जिनमंदिर, जिनमूर्तियों, जैनतीर्थीको यथास्थित रखलिया, संघ की आपदा भी, निवर्तनकरी, ऐसैं जैनधर्मके आदि रक्षक धर्मोपदेशक, व्रत प्रत्याख्यान करने, करानेवाले, सामायक प्रतिक्रमण पौषध श्रावकोकों करानेवाले, सूत्र प्रकरणादिके व्याख्यानकर्त्ता, मंत्र, यंत्र, चूर्ण, अंजनादि सिद्ध प्रभावक, कविप्रभावक, . जोतिषादि निमित्त प्रभावक, लिखत पठत जीवाजीवादिनवतत्वके अध्यापक. इत्यादि अनेक गुणोंसें संघके उपकारकर्ता, यती वर्गके उपकारों सैं लायकबंद कदापि दूर नहीं होगें, - लेकिन वर्तमानमैं भारतग्रंथमैं लिखा दृष्टांतकी सफलता दृष्टिगोचर हो रही है, जब पांडवोंकों वनवास हुआ, तब राजायुधिष्ठिर ब्राह्मणकों संगले वनदेखने निकले आगे देखा तो एकगऊ अपणी जन्मित वत्साका स्तनपान करती है. ब्राह्मणसैं पूछा, हे भूदेव ये उलटी गति क्यों, हो रही है, ब्राह्मननैं कहा, हे राजन्, ये कलियुग भावी स्वरूप दर्शाता है, कलियुगमैं, मातापिता पुत्रीका द्रव्य भक्षण करेंगें, उसका ये दृष्टांत कलियुग दर्शा रहा है, आगे जाकर देखातो, चंपक वृक्षके कंटक धूल पत्थर लोक जन डालते हैं, और उसके निकटवर्ती बंबूलका कंटक वृक्ष उसकी पूजा प्रदक्षिणा वंदन नमन स्तुति पुष्पमाल धूपोतक्षेपन आदि कर रहे हैं, धर्मराजनैं ब्राह्मनसैं पूछा ये असमंजस स्वरूप क्यों हो रहा है, ब्राह्मननैं कहा, कलियुग भावी स्वरूप दर्शता है, आगे निर्ववेकी कलियुगी मनुष्य, गुणवंत जनसैं द्वेष रखेगैं, दुःखदेंगें, और निर्गुणी, . विद्यारहित, मिथ्या वासितोंकी सेवा, पूर्वोक्त विधि बहुमान करेंगें २, आगे चलकर देखा तो, तीन पुष्करणिया, समश्रेणी है, प्रथम पुष्करणीका जल उछ-. लता है, वह दूरवर्ती, पुष्करणी मैं जाकर गिरता है, शमीपस्थपुष्करणीमैं एक विंद मात्र भी नहीं गिरता, तब धर्मराजने पूछा ब्राह्मण कहता है कलियुगमैं,.. जो निज होयगैं, उनोंकों द्रव्यादिनहीं देंगे, अन्यजनकों विशेष देनेमैं प्रीति श्रीमंत जन रक्खेगें ३ इत्यादि कलियुगमैं प्रवर्तनाके आगामी दृष्टांत सार्द्धशत-- मित कहे हैं, वह तो कलियुगी स्वरूप अवश्य प्रभाव दिखाने लगा है .

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