Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रस्तावना. ११. यथा जाती है, पूजन स्मरण भी करते हैं, लेकिन, श्रीसंघकों सहायकर्त्ता, भक्तजनोंका बंछितपूरक दादा गुरु देवभी महान् आचार्योंकी तरे पूजास्मरणके योज्ञ है, सर्व तीर्थकर एक सहस देवाधिदेव है, उनोमैंभी वीरजिनंदका व्याख्यान कल्पसूत्रके पर्यूषणों मैं सविस्तर पर्ने, स्वप्न उतारणा, जन्म महोत्सव, दशोठन इत्यादिविशेषपनैं, सूत्रकार भद्रबाहुस्वामी, तैंमैं टीकाकार प्रकरणानुसार विशेषपनैं, रचनाकरी, वैसैंही व्याख्यानकर्ता व्याख्यानकर श्रीसंघको श्रवण कराते हैं, अन्यतीर्थंकरोंका, तद्वत्वस्तार क्यों नहीं करते, तब तो प्रत्त्युत्तरमैं यही कहना होगा के, शासन्नायक आसन्न उपगारी होगये, इसलिये विशेषतासैं करा जाता है, इस ही प्रकार जिन २ राजन्य वंशियोंकों मिथ्यात्वका त्याग कराकर अमूल्य सम्यक्त्व रत्न दिया उन राजन्य वंशियोंकी शंतान उनोंके गुणोंसें आभारी हो उनगुरुदेवकी स्थान २ प्रति स्थापनाकर पूजा स्मरण ध्यान करते हैं, इसकों विचार सक्ते हैं बुद्धिमान, यथा तपगच्छमैं महान् पूर्वाचार्य अनेक ग्रंथोंके रचयिता, ज्ञानक्रियावंत अनेक होगये, उनोंकी स्थापना करके अद्यावधि किसी भी तपगच्छके साधु वा श्रावक पूजन स्मरण नहीं करा था, लेकिन पंजाब देश मैं जोढूंढिये साधु प मैं स्थितहो श्रधान परावर्तन होनेसें सात सहस्र ओसवाल [ भावडो ] कों, जो, की खरंतरादि गच्छके थे उन्हो जिन प्रतिमा की पूजा त्याग दीथी उनोंकों पूजे रै बणाये, पीछे आप संवेगीसाधुवने और जैन तत्वादर्शादि केइ ८ ९ ग्रंथ भाषामैं रच छपवाकर, प्रसिद्ध कर, जैन संघप्रर उपगार करा, उनोंके देवलोका नंतर, उनके शिष्य शंतानी, स्थान २ अब आत्मारामजी [ आनंद विजयसूरि : ] जीकी मूर्त्तियां, स्थापनकर, पुज वाते हैं, गौतमादि पूर्वाचार्योंकी स्थापना पूजा, क्यों नहीं कराई, प्रष्ण कर्त्ता महाशयजी, आत्मारामजी की मूर्त्तियां स्थापनेवालोंसें, ये प्रष्ण नहीं पूछा होगा, तभी तो खरतर गणवालों से ऐसा प्रष्ण छाप कर प्रसिद्ध करा है, सामान्य उपगार कर्त्ता की मूर्ति स्थापकर पूजा करानी, क्योंके एक जिन प्रतिमाके पूआ प्रकरणके सर्व संबंधकों वर्जके, अन्य जैन धर्मकी कृतिकों वे २२ समुदाय वाले भी स्वीकार करते थे, और पूर्वोक्त श्री जिन दत्तसूरिः प्रमुख गुरुदेवो तो मदिरामांसमैं प्रवृत्ति कारक, अहिंसा क्या वस्तु है, इस प्रकारके मिथ्यात्व निष्ठ राजन्य वंशियोंकों परमार्हत् बणाये, इसलिये दादा साहबका उपगार असंक्ष गुणविशेष, जिनोंकी पूजा स्मरण करना उचितही है, और दिव्य शक्तिसै मनोगत इष्ट प्रवृत्ति, आपदाकी निवृत्ति करणी, ये प्रत्यक्ष उपगार कों भक्त जन कैसैं, विस्मरणकर शक्ते हैं, वृथा आक्षेप करणा, समदृष्टियों के उचित नहीं, सुज्ञेषु किंबहुना

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 216