Book Title: Mahajan Vansh Muktavali Author(s): Ramlal Gani Publisher: Amar Balchandra View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना: समय सुंदरके सब लोकन मैं नितखरतर गच्छकी क्षांतिखरी, ५, हेजी श्रीजिन् दत्त चरित्र सुणी पतृसाह भये गुरुराजि येरे, चामर छत्र मुरा तब भेट गिगडद धूं धूं बाजियेरे, उमराव सबे कर जोड खडे पभणे अपने मुखहा जियेरे, समय सुंदर तूंही जगत्र गुरु पतसाह अकव्वर गाजियेरे, ६ हेजी ज्ञान विज्ञान कला • गुण देख मेरा मन सद्गुरु रीझियेजी हूमायूको नंदन एम अखे मानसिंघ पटो धरकीजियेजी, पतसाह हजूर थप्यो सिंहसूरिः मंडाण मंत्री श्वर वांझीयेजी, जिनचंद पट्टे जिनसिंहरिः चंदसूरज ज्यूं प्रतपी जियेजी, ७, हेजी हिडवश विभूषण हंस खरतर गच्छ समुद्रशशी, प्रतप्यो जिन माणिक्यसूरिके पट्ट प्रभाकर ज्युं प्रणमूं उल्हसी, मनशुद्ध अकव्वर मानत है जगजाणत है परतीति इसी, जिनचंद मुनींद चिरं तपो समय सुंदर देत आशीष इसी ८ इति श्रीदादा श्रीजिनचंद्रसूरिः अष्टकम् || उस अकव्वर पतसाहके श्रीजिनचंद्रसूरिः खरतर गच्छा चार्यके प्रथम समागमका चित्र उस समय चित्रकार लिखा वह वीकानेर के श्रीजी साहब के शमीप विद्यमान है, इन खरतराचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिःकों युग प्रधान जगद्गुरु पद बादसाहन दिया खरतर गछाचार्य, श्रीजिनेश्वर सूरिःने अणहिल पत्तनमैं चैत्यवासियोंसैं, जय प्राप्त करा, तब राजा दुर्लभ खरा विरुद दिया और राजा परमजिन धर्मी हुआ, - गुरुरौं शास्त्र अध्ययन करा, यह वृत्तांत गुजराती मैं छपा गुर्जर भूपावली ग्रंथ, ब्राह्मणोंके रचे मैं भी लिखा है चैत्यवासयिोंके १७ गोत्र श्रावक, खरतर की शुद्ध क्रिया ज्ञानको देख सुविहित पक्षमंतव्य करा, श्रीपति ( ढढ्ढा ) गोत्र गुरुनैं प्रतिबोध दे श्रावक किया इनोके चंद्र सूरिः उनोंके अभय देवसूरि : इनोके श्रीजिनवलभसूरिः चामुंडा [ सच्चाय ] देवीकों उपदेश वसवर्त्तीकर ५२ गोत्र श्रावक बणाये, इनोंके दादा श्रीजिनदत्त सूरिः इनोंनैं आत्मलब्धिसैं, महात्म्य प्रगटकर, अनेक क्षत्री राजाओंका कष्ट मिटा, राजन्यवंश, माहेश्वरवंश, ब्राह्मनादि उत्तमज्ञातीवालोंकों, • सम्यक्त युक्त श्रावक बणाये, इनोके मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरि : दुसरे दादाजीनैं भी अनेक राजन्यवंशियोंकों प्रति बोधकर श्रावक बणाये, इनोंके पंचमपट्टधर दादा श्रीजिन कुशलसूरि : तीसरे दादा प्रगटे इनोनें ५० सहस्रराजन्यवंशियोंके ऊपर ऊपगारकर श्रावक गोत्र किया, इस प्रकार खरतर बृहद्गछके युग प्रधानाचार्य गुरुदेव जैनमहाजनों जीवित विद्यमान समय अनेक उपकारकर धन और जनसैं जिनधर्मकी वृद्धिकरी,Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 216