Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 8
________________ प्रस्तावना. उपदेशसैं कृष्ण नारायण महावीर प्रभुके उपदेशसैं राजा श्रेणक, इस प्रकार होने सैं, उनोंके शंतान क्रमसैं व्रतधारी बन जायेंगें, स्त्री, धन, रखने वाले सम्यक्त “धारियोंनें, तथा सम्यक्त युक्त द्वादशवत धारियोंने, अनेक जीवोंकों, जैन धर्मी बनाया है, स्त्री धनके त्यागी हो, उपदेश करते हैं उनोंकों तो धन्यवाद है, लेकिन स्त्री धन रखकरभी जो मिथ्यात्वीको सम्यक्त्व धारी बनावै उसको अनंत - धन्यवाद ह । इस ग्रंथ मैं जैन खरतर गछाचार्य श्रीजिनदत्तसूरिः माण धारी श्रीजिनचंद्र सूरिः । तथा श्रीजिन कुशलसूरिः जी आदिकोंनैं जो निज आत्मबलसैं उपदेश देकर मंत्रशक्तिद्वारा राजन् वंशियों ऊपर उपगार करके जैनधम्र्मी महाजनवंशकी वृद्धि करी तदनंतर विक्रम शताब्दी पनरेके उतरते जंगम युग प्रधान भट्टारक श्रीजन माणिक्यसूरिः के पट्टधर श्रीजिनचंद्रसूरिः गुरुदेव वीर प्रभूके जन्मराशीपर 'आया हुआ भस्मराशी गृहके उतरनेके समय अवतारी प्रगटे जिनोंके ज्ञान और क्रियाकी प्रशंसा अनेक शंतजन तथा कर्म्मचंद वछावत श्रवण कर अकव्वर बादसा खास निज लेखणीस फुरमाण बीनती पत्र लाहोर नगर देश पंजाब सै अपनें निज उमरावोंकों गुरुकों आमंत्रन करनें भेजे उस समय आचार्यके ८४ शिष्योंमैंमैं, मुख्यशिष्य, सकलचंद्र उपाध्यायके शिष्य, समयसुंदरजी, विहारमैं, संगथे, उनोंनैं गुरुगुण, छंद, अष्टक भाषाबद्ध रचा है, यथा, संतनकी मुख वाणि सुणी जिनचंद मुनींद महंतजती, तपजप्प करे गुरु गुज्जर मैं प्रतिबोधत है भविकूं सुमती, तब ही चितचाहन चंप भई समय सुंदरके गुरु गछपती, भेजे पतसाह अजब्बकी छाप बोलाये गुरु गजराज गती, १ गुज्जर गुरु राजचले विचमैं चौमास जालोर रहे, मेदनी तटमंत्र मंडाण कियो गुरु नागोर आदर मांनल हे, मारवाड रिणी गुरु वंदनकों तरसे सरसे विच बेगब हे, हरख्यो संग लाहोरं आये गुरु पतसाह अकब्बर पांवग हे २, ऐजी साह अकब्बर बव्वरके गुरु सूरत देखतही हरखे, हम योगी यति सिद्धसाध व्रती सबही षट् दर्शन के निरखे टोपी वस अमावस चंद उदय अज तीन बताय कला परखे तप जप्प दया धर्म्म धारणकों जग कोई नहीं इनके सरखे, ३' गुरु अमृत बाणसुणी सुलतान ऐसा पतसाह हुकम्म किया, सब आलम मांहि अमारि पलाय बोलाय गुरु फुरमाण दिया जगजीव दया धर्म्म दाक्षणतें जिन शासन बीच शौभाग्य लिया, समय सुंदर हे गुणवंत गुरुग देखत हरखत भव्य हिया, ४, हे जी श्रीजी गुरु धर्म ध्यान मिले सुलतान सलेम अरज्ज करी गुरुजीव दया नित प्रेमधरे चित्त अंतर प्रीति प्रतीति धरी, कर्म्मचंदबुलाय दियो फरमान छोड़ाय खंभायतकी मछरी,

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