Book Title: Loka Vinshika
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Manikyasagar Suri
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द्वितीयविशिका
बलसारपुहइपालो निव्विन्नो भवनिवासस्स ||१६|| तरुणत्तणम्मि पतस्स धावए दविणमेलणपिवासा । सा काइ जीइ न गणइ देव धम्मं गुरु तत्तं ॥ १७॥ तो मीलइ कह वि अत्यो जड तो मुज्झइ तयपि पालतो । बीहेड रायतक्करअसहराईण निच्च पि ॥ १८ ॥ वड्ढते पुण 'अत्थे वड्ढइ इच्छा वि कह वि पुण दूरे । जहं मम्मणवणिओ इव सते वि धणे दुही होइ ||१९|| लद्धं पि धणं भोत्तु पावए वाहिविहुरिओ अन्नो । पत्थोसहादिनिरओ त्ति केवल नियइ नयणेहि ||२०|| जई पुण न होइ पुत्तो अहवा जाओ वि दुस्सीलो होइ । तो तह जूर अगे जइ कहिउ केवली तरइ ॥२१॥ पाणितलाइसु ससिसूरचक्कसंखाइलक्खणोवेआ । वज्जरसहसघयणा समचउरसा य सठाणा ||२२|| तह वि हु रज्जति खणेण कुट्ठखयपमुह भीमरोगेहिं । जह हुति सोयणिज्जा निवविक्कमरायतणउ व्व ||२३|| अन्ने उण सव्वंग गसिआ जररक्खसीइ जायति । रमणीण सज्जणाण य हसणिज्जा सोयणिज्जा य || २४|| इस विहवनयपराण वि तारुण्ण पि हु विडवणाठाण । जे पुण दारिद्दया अनीइमताई ताणं तु ॥ २५ ॥ परजुवइ रमण परदव्वहरण- बहुवेरकलहरियाणं । दुन्नयघणाण निच्च दुहाइ को वन्निरं तरइ ||२६|| नत्थि घरे मह दव्व विलसइ पयट्टइ बणुत्ति । डिभा रुअति घरे हद्धी किं देमि घरणीए ||२७|| दिति न मह ढोयं पि हु अत्तसमिfas गव्विय सयणा । सेसा वि ह घणिणो परिहवति न य दिति हु अवयास ||२|| अज्ज घरे नत्थि घय तेल्ल लोण च इषण वत्थ । जाया य अज्ज तउणी कल्ले होही किहु कुडुवं ||२९|| वड्ढइ घरे कुमारी वालो तणओ न अत्थो । रोगवहुलं कुडुब ओसहमुल्लाइ नत्यि ॥३०॥ उज्जीओ मह धरणी समागया पाहुणा वह अज्ज ।' जिन्नं घर च हट्ट झरड जलं गलइ सयल पि ॥ ३१ ॥
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