Book Title: Loka Vinshika
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Manikyasagar Suri
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द्वितीयविशिका
२१३
कलहकरी मह भज्जा असंवुडो परियणो पहू विसमो । देसो अधारणिज्जो एसो वच्चामि अन्नत्थ ॥३२॥ जलहिं पविसेमि महिं तरेमि धाउ धमेमि अहवा वि । विज्ज मत साहेमि देवय वा वि अच्चेमि ॥३३॥ जीवइ अज्ज वि सत्त मओ य इट्ठो पह य मह रुट्ठो। दाणिं गहण मग्गं तिविह वि णो कत्थ वच्चामि ॥३४।। इच्चाइ-महाचिंता-जरगहिया निच्चमेव दरिदा । कि अणुहवति सुक्ख कोसविनयरिविप्पु व्व ।।३५॥ इय विहवीण दरिदाण वा वि तरुणत्तणे वि किं सुक्ख । दुहकोडिकुलहर चिय वुड्ढत्त नूण सव्वेसि ॥३६॥ थरहरइ जघजुयल जिज्झइ दिट्ठी पणस्सइ सुई वि । भज्जइ अग पाएण होइ सिं भोअइ पउरो ।।३७।। लोगम्मि अणाइज्जो हसणिज्जो तह सोयणिज्जो अ। अच्छइ घरस्स कोणे पडिओ मंचम्मि कासतो ॥३८।। वुड्ढत्तणम्मि भज्जा पुत्ता धूआ वहूजणो वा वि । जिणदत्तसावगस्स व पराभवं कुणइ अइदुसह ।।३९।। चउसु पि अवत्थासु इअ मणुएसु वि विचिंतयंताणं । नत्थि सुह मुत्तूण केवलमभिमाणसजणिय ।।४०।। वाला किड्डा मंदा बला य पन्ना य. हायणि पवचा । पत्भार-मुम्मुही-सायणी य दसमी अ कालदसा ।।४१|| दसवरिसपमाणाउ पत्तेयमिमाउ तत्थ बालस्स । पढमदसा बीया पुण जाणिज्ज सुकीलमाणस्स ।।४२।। तइया भोगसमत्था होइ चउत्थी उ पुण बल विउल । पचमीआए पन्ना इदियहाणी य छट्ठीए ॥४३॥ सत्तमीआइ दसाएकासइ निज्जुहई चिक्कण खेल। सकुयइ वली पुण अट्ठमीइ जुवईण य अणिट्ठो ॥४४॥ नवमी अ नमइ सरीर वसइ य देहे अकामओ जीवो। दसमीइ. मुयइ वियलो दीणभिण्णस्सरो खीणो ॥४५॥ धावेइ रोहण तरइ सायर भमइ गिरिणिउजेसु । मारेइ बधव पि हु पुरिसो जो होइ घणलुद्धो ॥४६।। अडइ बहु सहइ

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