Book Title: Lalit Vistara
Author(s): Haribhadrasuri, Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 16
________________ ६४ ६८ * धर्मवृक्ष के बीज-अङ्कुर-पुष्प-फलका स्वरुप (२) दानशीलादिधर्म (३) साश्रवधर्म और निराश्रवधर्म स्वर्गादि सुख-संपत्ति फल क्यों नहीं ? (४) योगात्मकधर्म शैलेशी अवस्था * भावनमस्कार वाला प्रार्थना क्यों ६१ प्रतिमा, * केवलीसमुद्धात, करें ? अरहंताणं भगवंताणं स्तोतव्यसंपदा भावनमस्कार की कई कक्षाएं ३ आइगराणं वीतराग नमस्कार क्यों करते हैं ? ६२ मौलिक व उत्तरसांख्य, * प्रधान, प्रकृति पूजा के चार प्रकार - पुष्प, आमिष, स्तोत्र, प्रतिपत्ति ६३ प्रकृति के २४ तत्त्व __ * गृहस्थ और मुनि के लिए पूजा का विभाग ६३ सांख्यमतका निराकरण जैनमतका प्रदर्शन ४४ द्रव्यपूजा की क्या आवश्यकता ? आत्मामें योग्यता बिना कर्म संबन्ध नहीं * प्रतिपत्तिपूजा ६५ जैनमत से आत्मा में कर्तृत्व सिद्धि * प्राकृत भाषा में द्विवचन व चतुर्थी विभक्ति नहीं प्रकृति-स्थिति-रस-प्रदेशबन्ध * अनेक परमात्माओं को नमन क्यों ? ६६ अन्वय और व्यतिरेक ४५ अद्वैतनिषेध ६७ संबंध में दोनों ही सम्बन्धी की योग्यता जरुरी ४६ इच्छायोग-शास्त्रयोग-सामर्थ्ययोग व्याप्य-व्यापक का नियम ४७ ' इच्छायोग के ४ विशेषण ६८ पंचकारण * काल * स्वभाव, * नियति - शास्त्रयाग के ५ विशेषण भवितव्यता, * कर्म, * पुरुषार्थ सामर्थ्ययोग ४ - तित्थयराणं शास्त्र से सभी मोक्ष उपाय ज्ञात क्यों नहीं ? आगम धार्मिक वेदवादी का मतप्रातिभज्ञान और क्षपकश्रेणी, अतीन्द्रियार्थदर्शी तीर्थंकर नहीं है * दो प्रकार के सामर्थ्ययोग तीर्थकर मानने वालों का उत्तर क्षायोपशमिक एवं क्षायिक धर्म तीर्थ का स्वरुप - संसार को समुद्र की उपमा . धर्मसन्यास, योगसन्यास, - प्रथम अपूर्वकरण, * जैन संघ तीर्थ कैसे ? तीर्थ संसार से विपरीत * ५ अपूर्ववस्तु, * सम्यग्दर्शन कैसे ? ५३ सम्यग्दर्शन के ५ लक्षण: * प्रशम * संवेग ७१ । जिन प्रवचन में ४ विशेषता - (१) यथार्थतत्व: - * निर्वेद * अनुकम्पा * आस्तिक्य साततत्व: जीव-अजीव-आश्रव-संवर-बंध-निर्जरा५५४ द्वितीय अपूर्वकरण तात्त्विक-अतात्त्विक धर्मसंन्यास, मोक्ष (२) निर्दोष चरणकरण - चारित्र क्रियाए ५५ * आयोज्यकरण, * शैलेशीकरण ७२ (३) महापुरुषों से सेवित ५६ श्रेष्ठयोग अयोग (४) अविसंवादी प्रतिपादन, चैत्यवंदन सूत्रों में इच्छादियोगों का स्थान विसंवाद के कई प्रकार ५० प्रातिभज्ञान का पांच ज्ञानो में कहां समावेश ? ७३ ज्ञानकैवल्य और मोक्षकैवल्य १ अरहंताणं मातृका पद, गणधर विशेषण नाम अरहंत, स्थापना अरहंत, द्रव्य अरहंत, भावअरहंत ७४ परंपरा से उपकारक के २ अर्थ २ भगवंताणं ५ - सयंसंबुद्धाणं ९८ द्रव्योपकार, भावोपकार ७४ महेशानुग्रह का मत- महेशानुग्रह से बोध-नियम ..९ भग शब्द के ६ अर्थ - (१) ऐश्वर्य (२) रुप ७५ जैन मतका प्रत्युत्तरः तीर्थकर स्वयोग्यतावश बुद्धः (३) यश (४) अष्टप्रातिहार्य (५) धर्म (६) प्रयत्न ** फलप्राप्तिमें प्रधानकारण स्वयोग्यता ६० धर्म ४ प्रकार से (१) सम्यग्दर्शनादि, ७७ तीर्थंकर और अतीर्थंकर के सम्यग्दर्शनादिमें तारतम्य ७० १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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