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पर बाबजूद तमाम दुर्घटनाओ के सत्यनारायण जी अब भी जीवित है-कीतिर्यस्य स जीवति-और उनके मित्र तथा ब्रजभाषा के प्रेमी उन्हे कभी-कभी याद कर लेते हैं यद्यपि ऐसे लोगो की संख्या भी कम होती जा रही है । सत्यनारायण जी के अनन्य मित्र पाठक अयोध्याप्रसाद जी बहुत वर्ष पहले चल बसे थे और उनसे भी पूर्व आचार्य पं० पद्यसिह जी शर्मा का स्वर्गवास हो गया। जिन-जिन महानुभावो ने इस पुस्तक के प्रथम सस्करण के समय हमे सहायता दी, उनमे से कितने ही नहीं रहे-यथा प० नन्दकुमार देव शर्मा, पं० श्रीवर पाठक, श्री रामप्रसाद अग्रवाल, श्री केदारनाथ भट्ट, श्री लोचनप्रसाद पाण्डे, श्री लक्ष्मीधर बाजपेयी, श्री देवी प्रसाद चतुर्वेदी इत्यादि । श्री ब्रजनाथ गोस्वामी का स्वर्गवास तो अभी कल ही हुआ है। फिर भी हमारे सौभाग्य से सत्यनारायण जी के अनेक मित्र और प्रेमी अब भी विद्यमान है, जैसे आयुर्वेदपचानन ५० जगन्नाथप्रसाद शुक्ल, श्री बियोगी हरि, श्रद्धय बाबू गुलाबराय जी, श्रीभगतनारायण जी भार्गव संसद सदस्य, डाक्टर हरिशंकर शर्मा, श्री कृष्णदत्त जी पालीवाल, श्रीठाकुर प्रसाद जी शर्मा, श्री सूर्यनारायण जी अग्रवाल, श्रीयुत महेन्द्र जी तथा डाक्टर सत्येन्द्र । कविरत्न जी के सहपाठी और सबसे पुराने मित्र श्री हरप्रसाद जी बागची म अभी-अभी मिलना हुआ है।
सत्यनारायण जी कुलजमा ३८ वर्ष जीभित रहे। उनका जन्म २४ फर्वरी सन् १८८० को हुआ था और स्वर्गवास १५ अप्रैल १९१८ को। इस अल्यआयु मे भी उन्होंने हिन्दी साहित्य की जो सेवा की---उत्तररामचरित तथा मालती-माधव के अनुवादों द्वारा और हृदय तरंग और देशभक्त होरेशम की रचना से, यदि उसी को चिरस्थायी बना दिया जाय तो उनकी कीति की रक्षा हो सकती है। अगर हिन्दी साहित्य सम्मेलन उनके समस्त ग्रन्थों को प्रकाशित कर दे तो कुछ अशों में तो उस क्षति की पूर्ति हो ही सकती है, जो उक्त सामग्री के खो जाने से हुई है।
आधुनिक काल के ब्रजभाषा कवियों मे सत्यनारायण जी का नाम स्वर्गीय श्रीधर पाठक तथा कविवर रत्नाकर जी के बाद ही आता है,