________________ जहाँ हिन्दुस्तान भर में आपके विधानों की धूम मची हुई है वहीं हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप की रचना आपकी एक अमरकृति है। यहाँ आकर प्रत्येक नर-नारी के मुख से यही निकलता है यहाँ तो स्वर्ग जैसी सुखशान्ति है, पूज्य माताजी ने जंगल में मंगल ही कर दिया है। राजस्थान से आए कुछ तीर्थयात्री तो माताजी के चरण सानिध्य में आकर कहने लगे अब तक तो हमने केवल शास्त्रों में पढ़ा था कि स्वर्ग से इन्द्र आकर तीर्थंकरों की जन्म नगरियों की रचना करते हैं, किन्तु वर्तमान का हस्तिनापुर देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सचमुच में ही इन्द्र ने आकर नगरी बसाई है। साहित्य सृजन की श्रृंखला में इस “कातन्त्र रूपमाला” नामक संस्कृत व्याकरण का हिन्दी अनुवाद पूज्य माताजी ने सन् 1973 में किया था उसके पश्चात् सन् 1987 में इसका प्रकाशन हुआ तब से जैन समाज में साधुगण एवं ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों में व्याकरण शिक्षा का तेजी से प्रचार हुआ। कुछ कारणवश इस मध्य व्याकरण की प्रतियाँ, शीघ्र समाप्त हो जाने के बाद भी इसका दुबारा प्रकाशन संभव न हो सका। अब 5 वर्षों के अनन्तर बढ़ती हुई व्याकरण अध्ययन की मांग देखते हुए इसका द्वितीय संस्करण प्रकाशित हो रहा है। अनेक संशोधनों के साथ प्रस्तुत संस्करण अवश्य ही जिज्ञासुओं की जिज्ञासा पूर्ण करेगा ऐसी आशा है। भगवान् जिनेन्द्रदेव से यही प्रार्थना है कि पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी स्वस्थ रहते हुए चिरकाल तक भव्यों को मार्गदर्शन देती रहें। (18)