________________ ब्राह्मी की प्रतिमूर्ति-गणिनी आर्यिका ज्ञानमतीजी -आर्यिका चन्दनामती जम्बूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका परमपूज्य गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी, जिनके परिचय का प्रयास कर रही हूँ उन्हें एक कुशल शिल्पी कहूँ या कुमारियों की पथप्रदर्शिका, आशु कवयित्री कहूँ या विदुषी लेखिका, सरस्वती की चल प्रतिमा कहूँ या पूर्णिमा की चाँदनी / सारे ही विशेषण उनके चतुरक्षरी “ज्ञानमती” नाम में समाहित हो जाते हैं। - उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में छोटे से कस्बे टिकैतनगर के श्रेष्ठी छोटेलालजी क्या कभी सोच भी सके होंगे कि मेरी सुकुमार मैना सारे विश्व में मेरा और मेरे कस्बे का नाम रोशन करेगी ? उन्होंने सोचा हो या नहीं, माता मोहिनी ने तो मैना की बालदुर्लभ ज्ञानवर्धक वार्ताओं से अनुमानित कर लिया था कि यह एक गृहिणी के रूप में माँ न बनकर जगन्माता बनेगी। वि० सं० 1991 (सन् 1934) की शरद् पूर्णिमा ने तो मैना की जन्मकुण्डली ही खोल कर रख दी थी कि इसकी ज्ञान चाँदनी से समस्त संसार को शीतलता प्राप्त होने वाली है। जीवन के 17 वर्ष पूर्ण हुए थे कि वैराग्य के बढ़ते कदमों को संबल मिला आचार्य श्री देशभूषण महाराज का, अत: वि० सं० 2008 (सन् 1952) की शरद् पूर्णिमा को सप्तम प्रतिमा रूप ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया पुन: वि० सं० 2009 चैत्र कृ० एकम (सन् 1953) को महावीरजी अतिशय क्षेत्र पर क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर “वीरमती” नाम प्राप्त किया। अनंतर आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के दर्शन करके उनकी सल्लेखना के पश्चात् वि० सं० 2013, वैशाख कृ० 2 (सन् 1956) को माधोराजपुरा (राज०) आचार्य श्री के प्रथम पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा धारण कर ज्ञानमती नाम से अलंकृत हुई। संघर्षों की विजेत्री एवं दृढ़ता की मूर्ति स्वरूप आपका यह चार लाइनों का परिचय ही आपकी जीवन्त ज्योति को प्रज्वलित कर रहा है। . इन्होंने जैसे अपने जीवन का निर्माण किया उसी प्रकार कई पुरुषों के जीवन को संस्कारों की टांकी से उकेर-उकेर कर मुनि का रूप प्रदान कराया पुन: उन्हें स्वयं नमस्कार भी करने लगीं। इसलिए मैंने “कुशलशिल्पी" की संज्ञा से संबोधित किया है। - आप “कुमारियों की पथ प्रदर्शिका" इसलिए हैं कि उनका रत्नत्रय पथ आपने प्रशस्त किया है। उससे पूर्व बीसवीं शताब्दी में किसी कुमारी कन्या ने दीक्षा धारण नहीं की थी। इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम आदि महाविधानों एवं विशाल टीकाग्रन्थों के सृजन से आशुकवयित्री एवं विदुषी लेखिका का रहस्य भी स्वयमेव प्रकट हो जाता है / सरस्वती का वरदान तो आपको प्राकृतिक रूप में ही प्राप्त है इसीलिए आज सारा विद्वज्जगत् मूक स्वर से यह स्वीकार करता है कि वर्तमान में पूज्य ज्ञानमती माताजी के समान ज्ञानवान अन्य कोई व्यक्तित्व नहीं है। शरद् पूर्णिमा की चाँदनी तो आपके पीछे-पीछे चलकर सबको ज्ञानामृत से संतृप्त कर रही है। इसीलिए ज्ञानमती इस नाम में आपका सारा अस्तित्व समाविष्ट हो जाता है। __शताधिक ग्रन्थों की रचना, जम्बूद्वीप रचना निर्माण में सम्प्रेरणा, ज्ञानज्योति की भारत यात्रा का प्रवर्तन, सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका का लेखन आदि आपके चतुर्मुखी कार्यकलापों से सारा देश सुपरिचित है। (17)