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( १५ ) भ्रान्न कल्पना-मंत्रों में श्रेष्ठ णमोकार मंत्र की अनादि मूल मालिकसमुन्जक्यामरा सेंसिलिसातवाहाशवेश उस समय से हुआ, जब से पत्रला टीका का हिन्दी अनुवाद सहित प्रथम भाग प्रकाश में श्राया तथा उसके आधार पर यह प्रचार किया गया, कि पुष्पदंस प्राचार्य ने इसकी रचना की, अत: यह निबद्ध नाम का पारिभाषिक मंगल है, जिसका भाव है प्रथ कर्ता की यह रचना है। जीवदारम खण्ड के श्रारंभ में कहा गया है "इदं जीवदाणं विद्धर्मगलं"। इसका यह अर्थ लगाना, कि जीवदास में पारिभापिक निबद्ध मंगल है, असंगत है। जीवदारम सूत्र का नाम नहीं है। वह एक अंथ का नाम है । घटखंडागम के प्रथम खण्ड को जीवदाए संज्ञा प्रदान की गई है। उस ग्रंथ में मंगल संलग्न रहने से कहा है. कि यह जीवदारण मंगल ग्रंथ सहित है। यदि पारिभाषिक मंगल निबद्ध" शब्द का अभिधेय होता, तो "इदं जीवद्राणं मणिबद्धमंगलं' पाठ होता। ऐसा नहीं है, अतः रायमोकार को पुष्पदन्त आचार्य को रचना कहना 'गगनारविन्द मुरभि:'---बाफाश का कमल सौरभ संपन्न है यह कथन सदृश असत्य और अपरमार्थ याद है।
विचारक बुद्धि ( Common Sense ) के द्वारा चितन करते पर, यह ज्ञाच होगा कि जिस धर्म की चौबीस सर्वत्र तीर्थकरों ने देशना दी उस धर्म की आधार शिला रूप णमोकार मंत्र को किस प्रकार दूसरी सदी में उत्पन्न मानने को विवेक द्वारा समर्थन मिलेगा? ऐसी महान सांस्कृतिक विशुद्ध घारमा के विरुद्ध नई शोष के नाम पर अयथार्थ प्रचार पक्ष का मोह अमंगल कार्य है । श्रमण संस्कृति के मूलाधार श्रमम् जीवन की देवसिक क्रियाओं में जप तप में इस महामंत्र समोकार के स्मरण की आवश्यक्ता बताई गई है। अतः धार्मिक एवं विवेकी व्यक्ति का कर्तव्य है, कि पक्ष व्यामोह घश किए प्रचार के अनुसार अपनी धारमा न बनावें । श्रागम, युक्ति तथा परंपरादि के अनुसार विचारों को विशुद्ध बनाना समीचीन कार्य होगा।
जयपवला टीका की ताम्रपत्रीय प्रति-कषायपाहुड सूत्र की जयधचला टीका की ताइपत्रीय प्रति मूबिद्री के सिद्धान्त मंदिर में विद्यमान है। यह पुरातन कानड़ी लिपि में है। भाषा कहीं संस्कृत है, कहीं प्राकृत है। इस प्रकार 'मरिण-प्रवाल' न्यायानुसार यह भाषा पाई जाती है। यह प्रति सात, आठ सौ वर्ष पुरातन कही जाती है। उसे ही भाज मूल प्रदि माना जाता है। चारित्रचक्रवर्ती १०८ आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की इच्छा पूर्ति हेतु उक्त साठ हजार प्रमाण प्रध की ताम्रपत्रों में उत्कीर्ण प्रति आचार्य शांतिसागर जनवाणी जीसोद्धारक संस्था के द्वारा तैयार कराई गई। इसी प्रकार वला टीका भी ताम्रपत्र में