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ध्यानमा रही प्राचीनकालीन अनशन परंपरानी आगली प्रतिभाने चमकावी सं. २००६ ना वैशाख वद-६ नमता पहोरे ४-३२ मीनीटे पोताना अनन्य पट्टधर गच्छाधिपति आचार्यश्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी म० विगेरे चतुर्विध संघनी विशाल हाजरीमा नमस्कार महामंत्रनु श्रवण करता नश्वरदेहनो त्याग कयो:
अमर याद : नश्वरदेहना त्यागनी साथे एक भव्य जीवनयात्रा समाप्त थइ विश्वनी बाह्य चर्मचक्षुथी एक महान विभूति अदृश्य थइ गइ सात आगमवाचनाओ स्मृत्यवशेष थयेल माथुरी-वाल्लभी वाचनाओनी पुनर्यादरूपी सरस्वती, भव्य बे आगममंदिरोमा अधि कल्पनासृष्टाउपदेश द्वारा, प्रणेता द्वारा प्रवचनान्धकार दिवाकर श्री देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण आगमोने पत्रारूढ कराव्या ते १००० करता वधु प्राचीन स्मृतिना पुनरावर्तन रूप गंगा, अने अनशननी जेम समाधिपूर्वक अर्ध पद्मासन मुद्रामा जीवनना छेल्ला श्वासनी पूर्णाहुति करवा द्वारा प्राचीनकालीन भव्यतम अनशनप्रथाने पुनर्जीवित करवा रूप यमुना, आ त्रण अमर कार्यरूप गंगा, जमना, सरस्वतीना संगमस्थान प्रयागतीर्थ रूप तेओश्रीना जीवननी यशोगाथा गाता तेओश्रीना महान् कायोनी पूनीत याद.
अन्त : पू. आगमोद्धारकश्रीना प्रत्यक्ष दर्शन वन्दनना लाभथी पण वंचित एवो अज्ञानी हु तेओश्रीना अर्थ गंभीर घुस्तकोंनी प्रस्तावना केवी रीते लखी शकवानी क्षमता धरावी शकु ? छतां आ एक ते पूज्यश्रीना