Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ ૧૬ सकायम छेल्ला दस जीवस्थान होय ते आ-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय, असंझिपचेंद्रिय अने संशिपंचेंद्रिय ए पांच पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम दस । ५७. अयताऽऽहार तिर्यक्तनु कषायाऽज्ञानद्वय प्रथमलेश्यात्रिकभव्याऽभव्याऽचक्षुः नपुंसकमिथ्यात्वे सर्वाणि । अयत - अविरति आहारी, तिर्यंचगति, काययोगी, ४ कषायी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, प्रथमलेश्यात्रिक-कृष्ण, नील अने कापोत, भव्य, अभव्य, अचक्षुदर्शनी, नपुंसकवेदी, अने मिथ्यात्वी एमां बधा जीवस्थानो होय | ५८. केवलज्ञानदर्शनसं यमपञ्चकमनोज्ञानदेश मनो मिश्र संज्ञिपर्याप्तः । , केवलज्ञानी, केवलदर्शनी, संयमपश्चक-सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय अने यथाख्यातसंयमी - चारित्री, मनःपर्यवज्ञानी, देशविरति मनोयोगी, अने मिश्रसम्यक्त्री एमां संज्ञिपर्याप्त जीवस्थान होय । ५९. वचने ऽन्त्यपर्याप्तपञ्चकम् । वचनयोगीमां छल्ला पांच पर्याप्ता ते पर्याप्त बेइंद्रिय, पर्याप्त इंद्रिय, पर्याप्त चउरिंद्रिय तथा पर्याप्त संज्ञी अने असंज्ञी पंचेंद्रिय जीवस्थान होय । ६० चक्षुषि त्रिकम् । चक्षुदर्शनीने विषे छेल्ला त्रण- चउरिंद्रिय, संज्ञी पंचेंद्रिय अने असंशी पंचेंद्रिय जीवस्थान होय |

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98