Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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अस्थिर, शुभ, अशुभ, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, पर्णचतुष्क ४, अने अंतराय ५, ए सत्तावीसनो ध्रुव उदय होय छे. चाकीनी प्रकृतिओं अध्रुवोदयी जाणवी.
____ हवे अध्रुवसत्ता प्रकृति कहे छे१५४. सम्यक्त्वमिश्रनरद्विकजिनायुवै क्रियैकादशाहारक
सप्तकोच्चमध्रयम् । अनादि मिथ्यात्वी जीवने जे निरंतर सत्ताए होय ज ते ध्रुवसत्ता, अने जे कोई वोर सत्ताए होय कोई वार सत्ताए न होय ते अध्रुवसत्ता. तेमां अध्रुवहात्ता सहावीस. ते आ प्रमाणे-सम्यक्त्यमोहनीय, मिश्रमोहनीयमनुस्मक, सिम; आयुष्य ४, वैक्रिय एकादश, आहारकलप्तक अने उच्चगोत्र, ए अट्ठावीस अध्रुवसत्ता, बाकीनी प्रकृतिओ ध्रुवसत्ता जाणवी.
गुणस्थानमां ध्रुवसत्ता कहे छे१५५. ध्रुवं त्रिगुणे मिथ्यात्वं, सास्वादने चानन्ताः
सम्यक्त्वं मिश्र मिश्रे च ।
आहारकतीर्थयोन मिथ्यात्वम् । पहेला त्रण गुणठाणाने विष मिथ्यात्व नियमा होय अने सास्वादनमां अनंतानुबंधिकषाय ४ सम्यक्त्वमोहनीय नियमा होय अने मिश्रमोहनीय निश्चये होय, अने मिश्रगुणस्थानके मिश्रमोहनीय नियमा होय.

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