Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 90
________________ ७३ २२१. कर्मणि जघन्यं सर्वजीवाऽभव्यानन्तघ्नरसप्रदेशम् । कर्मयोग्य दलिकमां जघन्थथी सर्वजीवथी अनंतगुण अने अभव्यथी अनंतगुण रस अने प्रदेश होय छे. सर्वजीवथी अनंतगुण रसवाला अने अभव्यथी अनंत गुण प्रदेशवाला कर्मस्कंधोने जीव ग्रहण करे छे. २२२. प्राग् भाषाया अष्टस्पर्शाः । भाषा वर्गणाथी पहेलानी औदारिकादि चार वर्गणा आठ स्पर्शवाली छे. हवे कर्मग्रहण बाद आटे कर्मने केटलो भाग आवे ते कहे छे __ बहेचण २२३. यथास्थिति प्रदेशाधिक्यं वेद्ये विशेषेण । स्थिति प्रमाणे अर्थात् जेनी स्थिति ओछी होय तेने कर्मद लिक भागमा ओछी आवे अने जेनी स्थिति वधु होय तेने वधु भाग मले. वेदनीयकर्मने सहुथी वधु भाग मले. हवे उत्तर प्रकृतिना भाग कहे छे२२४. स्वानन्तशः सर्वघातिनाम् ।

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