Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 96
________________ ___ नद्धित्रिकोद्योततियङ्नरकस्थावरद्विकसाधारणातपाप्टकषायनपुंस्त्रीहास्यादिपुंसज्वलननिद्राद्वयविघ्नावरण क्षयः क्षपके । क्षपकश्रेणि करनार, प्रथम चार अनंतानुबधिकषायनो क्षय करे. पछी मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने समकितमोहनीय ए त्रणनो अनुक्रमे क्षय करे, पछी त्रण आयुष्यनो पछी एकेंद्रिय, विकलें द्रिय, थिणद्धित्रिक, उद्योत नाम, तिर्यच. द्विक, नरकद्विक, स्थावरद्विक, साधारणनाम अने भातपनाम ए सोलनो क्षय करे पछी आठ कषायनो क्षय करे पछी नपुंसकवेद अने ते पछी स्त्रीवेदनो क्षय करे, ते पछी हास्यादिपटकनो ते पछी पुरुषवेदनो ते पछी संज्वलन चार कषायनो अनुक्रमे, ते पछी बे निद्रानो ते पछी अंतराय ५, ज्ञानावरणीय ५ अने दर्शनावरणीय ४ ए १४ नो क्षय करे. २३७. कार्याभ्यासादिकृतवैषम्यं वीर्यविघ्नघातज वीर्यम् । कार्यनी निकटता आदि वडे कयु छे जीवप्रदेशोन विषमपणु जेमां एवा वीर्यातरांयना नाशथी थनार योग ते वीर्य छे. २३८. असङ्ख्यलोकसमं प्रदेशेऽपरम्परमपि । एकेक प्रदेशे वीना अविभागो मसंख्यात लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण होय छे.

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