Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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त्यारे बादरभावपुद्गलपरावर्त अने क्रम वडे स्पर्श कराय त्यारे सूक्ष्मभावपुद्गलपरावत थाय.
हबे प्रदेश धना भांगा कहे छे२३२. अक्लिष्टनिद्रदर्शनभयकुत्साद्वितीयतृतीयतुर्यकषाय
विघ्नज्ञानघ्नानाममोहायुषामनुत्कृष्टश्चतुर्धा शेषे
द्विधा प्रदेशे।
अक्लिष्ट निद्रदर्शन-निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला अने स्त्या. नर्द्धि ए त्रण क्लिष्टनिद्रा सिवाय बाकीनी दर्शनावरणीय ६, भय, दुगंछा बीजा-अप्रत्याख्यानीय ४, त्रीजा-प्रत्याख्यानीय ४, चोथा-संज्वलन ४ कषाय, अंसराय ५, अो ज्ञानावरणीय ५, ए त्रीस (३०) उत्तर प्रकृतिओने तेषज मोहनीय अने आयुष्य वर्जीने ६ मूल प्रकृतिनो अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध चार प्रकारे (सादि, अनादि, ध्रुव अने अध्रुव) जाणवो. शेष-बाकीना त्रण प्रकारना प्रदेशब धमां तेमज शेष सर्वप्रकृतिना सर्वप्रकारना प्रदेशबंधमां बे भेदे (सादि अने अध्रुव) बंध होय.
हवे योगस्थान आदिनु अल्पबहुत्व कहे छ२३३. योगप्रकृतिस्थितितदध्यवसायानुभागकर्मप्रदेशरसाः
श्रेण्यस ख्यांशासङ्ख्यघ्नचतुरनन्तगुणाः । श्रेणिना असंख्यातमा भागमा जेटला आकाशप्रदेश होय तेटला योगस्थानो छे. तेथी प्रकृति भेदो, स्थिति भेदो,

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