Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ ૫૦ ऽध्यवसायानुभागयोगभागोत्सर्पिणी- तत्समयप्रत्येकनिगोदक्षेपे त्रिवर्गे आद्यानन्तम् । केटलाक आचार्य कहे छे चोथु युक्त असंख्यातने एक वार वर्ग करीर त्यारे सातमु जघन्य असंख्यात - असंख्यात थाय । वली ते सातमाने त्रण वार वर्ग करोए पछी तेमां लोकाकाशना प्रदेशो, घर्मास्तिकायना प्रदेशो, अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, एकजीवना प्रदेशो स्थितिबंधना अध्यवसायस्थानो, अनुभाग-रस बंधना अध्यवसाय स्थानो, योगना अविभाज्य भागो, उत्सर्पिणी अब सर्पिणीना समयो, प्रत्येक शरीरवाला जीवो अने निगोदो. ए दशनो क्षेप करीए पछी ते राशिने त्रण वखत वर्ग करी त्यारे आद्यानंत- जघन्य परीत्त अनंतु थाय । १५१. अभ्यासे तु त्रिवर्गिते सप्तमं च । त्रिवर्गिते - सिद्ध निगोदतरुकालपरमाण्वलोकाकाशे क्षिप्ते त्रिवर्गे केवलद्विके परम् । जघन्य परीत्त अनंतनो अभ्यास करीए त्यारे चोथु जघन्य युक्त अनंतु थाय, वली ते जघन्य युक्त अनंतनो त्रण वार वर्ग करी त्यारे सातमु जघन्य अनंतानंत थाय. वली जघन्य अनंतानं तनो त्रण वार वर्ग करीए पछी तेमां सिद्धना जीवो, निगोदना जीवो, तरु-वनस्पतिना जीवो, काल-त्रण कालना समयो, पुद्गलना परमाणुओ मने अलोकाकाशना प्रदेशी नांखीए पछी ए राशिनो त्रण वखत वर्ग करीने केवलज्ञान अने केवलदर्शनना पर्यायो उमेरीप त्यारे उत्कृष्ट अनंतानंत थाय ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98