Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ हवे उत्तरप्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध कहे छे१६९. कषाये विघ्नावरणासाते सूक्ष्मविकलत्रिके आध संस्थानसंहननमृदुलघुस्निग्धोष्णसुरभिसितमधुरसुभगायुच्चसुरद्विकस्थिरषदकपुरुषरतिहास्ये चत्वा रिंशत् त्रिंशदष्टादश दश परा।। १. कषाय १६ मां तथा २. अंतराय ५, आवरण-ज्ञानावरणीय ५ अने दर्शनावरणीय ९.असातावेदनीयमां तथा ३. सूक्ष्मत्रिकसूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण, विकलत्रिक-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिद्रियमां तथा ४. आधसंस्थान,आद्यसंघयण,मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्णस्पर्श, सुरभिगध, सित-श्वतवर्ण, मधुररस; शुभ विहायोगति, उच्चगोत्र, देवद्विक, स्थिरषटक-स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय अने यश नाम, पुरुषवेद, रतिमोहनीय अने हास्यमोहनीयने विषे अनुक्रमे ४०, ३०, १८ अने १० कोडाकोडी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति होय. १७०. शेषाकारसंहनने वर्णरसयोश्च द्विद्वयर्धवृद्धिः । बाकीना संस्थान अने संघयणने विषे तथा वर्ण अने रसमां बब्बेनी अने अढी अढी कोडाकोडी सागरोपभनी वृद्धि जाणवी ते आ प्रमाणे १. समचतुरनसंस्थान अने वज्रऋभनाराच संघयणनी १० कोडाकोडी सागरोपम होय. बब्बे कोडाकोडी सागरोपम वधारता

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98