Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 83
________________ ૬૬ १९७. सज्वलनपुंसोरनिवृत्तिः । अनिवृत्तिबादर गुणस्थानवर्ती क्षपक-संज्वलन कषाय ४ अने पुरुषवेदनी जघन्यस्थिति बांधे छे. १९८. सातयशउच्चाssवरणविघ्नानां सूक्ष्मः । सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवर्ती क्षपक सातावेदनीय, यश:नाम, उच्चगोत्र, आवरण - ५ ज्ञानावरण ४ दर्शनावरण ए ९ अने ५ अंतरायनी एम १७ प्रकृतिनी जघन्यस्थिति बांधे छे. १९९. वैक्रियषट्कस्यासी । पर्याप्त असंशी पंचेंद्रिय तिर्यच वैक्रियषट्कनी जघन्यस्थिति बांघे छे. २००. आयुषां सञ्ज्ञ्यपि । संज्ञी अने असंज्ञी पंचेंद्रिय चारे आयुष्यनी जघन्य स्थिति बांधे छे. २०१. शेषाणां बादरपर्याप्तैकाक्षः । शेष - बाकीनी ८५ प्रकृतिनी बादर पर्याप्त एकेंद्रिय जघन्यस्थिति बांधे छे. २०२. सादिध्रुवेतरोऽजघन्यः सप्तसु । सादिबंध, अनादिबंध, ध्रुवबंध अने अध्रुवबंध ए चार भांगा जाणवा अथवा उत्कृष्टबंध, जघन्यबंध, अनुत्कृष्टबंध अने अजघन्यबंध ए चार भांगा जाणवा. सात मूलप्रकृतिमां अजघन्यबंध सादि, अनादि, ध्रुव अने अध्रुव एम चार भेदे होय.

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