Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
View full book text
________________
૫૮
आयुषस्त्रयस्त्रिंशत् सागराः । त्रिंशत् कोटाकोट्यः ज्ञानदर्शनघ्नवेद्यान्तरायाणाम् । सप्ततिमोहस्य ।
नामगोत्रयोविंशतिः । १. आयुष्यनी उत्कृष्टस्थिति ३३ सागरोपमनी छे.
२. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय अने अंतरायकर्मनी उत्कृष्टस्थिति ३० कोडाकोडी सागरोपमनी छे.
३. मोहनीयकर्मनी उत्कृष्टस्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपमनी छे.
४. नाम अने गोत्रकर्मनी उत्कृष्टस्थिति २० कोडाकोडी सागरोपमनी छे.
हवे मूलकर्मनो जघन्यस्थितिषध कहे छे१६८. अपराष्टौ मुहूर्ताः ।
द्वादश वेद्ये।
शेषे भिन्नम् । नाम भने, गोत्रकर्मनी जघन्यस्थिति ८ मुहर्तनी छे. वेदनीयकर्मनी १२ मुहूर्तनी छे. बाकीना कर्मनी जघन्यस्थिति अंतमुहर्तनी छे.

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98