Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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૨૫
मनःपर्यायज्ञानी थोडा, तेथी अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा, तेथी मतिज्ञानी - श्रुतज्ञानी विशेष अधिक परस्पर सरखा, तेथी विभंगज्ञानी असंख्यातगुणा, तेथी केवलज्ञानी अनंतगुणा अने तेथी मतिअज्ञानी-श्रुतअज्ञानी अनंनगुणा मांहोमांहे सरखा.
हवे संयमद्वारमां अल्पबहुत्व जणावे छे
७५. सूक्ष्मस्तोक - परिहार- यथाख्यातसङ्ख्य-च्छेद- सामायिकसङ्ख्य-देशाऽसङ्ख्याऽयताऽनन्तगुणाः ।
सूक्ष्मसंपरायसंयभी थोडा, तेथी परिहारविशुद्धिवाला संख्यातगुणा तेथी यथास्यातचारित्रवाला संख्यातगुणा तेथी छेदोपस्थापनीय चारित्रवाला संख्यातगुणा, तेथी सामायिकचारित्रवाला संख्यातगुणा, तेथी देशविरत असंख्यातगुणा, तेथी अविरत अनन्तगुणा होय छे.
हवे दर्शनद्वारमां अल्पबहुत्व कहे छे
७६. अवधिस्तोक - चक्षुरसङ्खय - केवला - ऽचक्षुरनन्तगुणाः । अवधिदर्शनवाला थोडा, तेथी चक्षुदर्शनवाला असंख्यातगुणा; तेथी केवलदर्शनवाला अनंतगुणा अने तेथी अचक्षुदर्शनवाला अनंतगुणा होय छे
हवे लेश्याद्वारमां अल्पबहुत्व कहे छे
७७. उत्क्रमात् स्तोक-सङ्ख्यद्विका नन्तद्विकाधिका लेश्याः । पश्चानुपूर्णेथी लेश्या कहेवी शुक्ललेश्या, पद्मलेश्या,

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