Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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१४. अंत्य-अयोगिकेवलिगुणस्थानमां-औदारिकद्विक, औदारिकशरीर अने औदारिक अंगोपांग, अस्थिरद्विक-अस्थिर अने अशुभ, गम-विहायोगति-द्विक-शुभविहायोगति अने अशुभविहायोगति, प्रत्येकत्रिक-प्रत्येक, स्थिर अने शुभ, संस्थान ६, अगुरुलघुचतुष्क-अगुरुलघु, उपघात, पराघात अने उच्छ्वास, वर्णचतुष्क-वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श, निर्माणनाम, तेजप्तशरीर, कार्मणशरीर, वज्रऋषभनाराच संघयण, दुःस्वरनाम, सुस्वरनाम, सातावेदनीय अने असांतावेदनीय, ए बेमांनी एक, एम त्रीश रहित १२ प्रकृतिओ उदयमां होय ।।
अन्त्यान्त-अयोगि गुणस्थानमा छेल्ला समये सुभगनाम, आदेयनाम, यशनाम, बेमांथी एक वेदनीय, त्रसत्रिक-त्रस, बादर अने पर्याप्त, पंचेंद्रियजाति, मनुष्य गति, मनुष्यायुष्य, जिननाम अने उच्चगोत्र ए बार प्रकृतिनो अंत थाय छ।
उदयाधिकार समाप्त
उदीरणा १२४. नोदीरणाऽयोगिनि । १२५. आऽप्रमत्ताद् वेदनीयद्विकाऽऽयुषाम् ।
अयोगिकेवलिगुणस्थानमां उदीरणा न होय । उदीरणा एटले उदयमां नहिं आवेला कर्मपुद्गलने उदयमां आणवा । अप्रमत्त आदि सात गुणस्थानोमां वेदनीयद्विक-सातावेदनीय अने असातावेदनीय अने मनुष्यायुष्य

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