Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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औपशमिक, क्षायिक, मिश्र-क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणा मिक अने संयोगज-लांनिपातिक ए छ भाव छे. एना (अनुक्रमे) बे, लव, अढार, एकवीश, त्रण अने छव्वीश भेदो छ । १३२. सम्यक्त्वचारित्रे ।
__ औपशमिकभावमा उपशमसम्यक्त्व अने उपशमचारित्र ए बे भेद होय छे । १३३. केवलज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च । ___ क्षायिकभाव मां-केवलज्ञान, केवलदर्शन, दानलब्धि, लाभ लब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि अने चशब्दथी क्षायिकसम्यक्त्त्व अने क्षायिकचारित्र एम नव भेद जाणवा । १३४. सशेषोपयोगदेशानि । ___ भायोपशमिकभावमां-शेषोपयोग-बाकीना दश उपयोगमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्याय ज्ञान, चक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान, देशविरति सहित दानादि पांच लब्धि-दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि अने वीर्यलब्धि, सम्यक्त्व अने चारित्र ए अढार भेद जाणवा। १३५. गतिवेदकषायलेश्यामिथ्यात्वाऽज्ञानासंयतासिद्धत्वानि ।
__ औदायिक भावमां-गति ४-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुव्यगति, देवगति, वेद ३-स्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेद, कषाय ४-क्रोध, मान, माया अने लोभ, लेश्या ६-कृष्ण, नील,

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