Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 60
________________ ४३ क्रमान्नपुंसकस्त्रीहास्यषट्कपुंस्तुर्यक्रोधमदमायाक्षयोऽलोभान्त्य द्वितीयोऽनिद्राद्विकान्त्योऽज्ञानान्तरायदर्शना - ऽदेवगमगन्धद्विकस्पर्शाष्टकवर्णरसतनुबन्धन सङ्घात नपञ्चकनिर्माण संहननसंस्थानास्थिरषट्कागुरुलघुचतुष्कापर्याप्तप्रत्येको पाङ्गत्रिकसुस्वरनीचान्यतरवेदनी यान्त्यः । ४ ए आठ अनिवृत्तिना बीजा भागमां- स्थावरद्विक-स्थावर अने सूक्ष्म तिर्यचद्विक- तिर्यचगति भने तिर्यखानुपूर्वी, नरकद्विकनरकगति अने नरकानुपूर्वी, आतपद्विक आतप अने उद्योत, स्त्यानर्द्धित्रिक, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय अने साधारण ए सोल प्रकृति रहित १२२ नी सत्ता होय । त्रीजा भागमां- अप्रत्याख्यानीयकषाय ४ अने प्रत्याख्यानावरणकषाय रहित ११४ नी सत्ता । चोथा भागमां नपुंसक वेद रहित ११३ नी सत्ता । पांचमा भागमांस्त्रीवेदरहित ११२नी सत्ता । छठ्ठा भागमां हास्यादि छ रहित १०६ नी सत्ता | सातमा भागमां- पुरुषवेद रहित १०५ नी सत्ता । आठमा भागमांसंज्वलन कोष रहित १०४ नी सत्ता । नवमा भागमां-संज्वलन मद-मानरहित १०३ नी सत्ता । सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानमां मायारहित १०२ नी सत्ता । क्षीणमोह गुणस्थानना अंत्यद्वितीय - छेल्ला समयनी पहेला समयमां लोभ रहित १०१ नी सत्ता । अंत्य-छेल्ला समये निद्राद्विक-निद्रा अने प्रचला रहित ९९ नी सत्ता । सत्ता । सयोगिकेवलिगुणस्थाने - ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५ अने दर्शनावरणीय ४ ए १४ प्रकृति रहित ८५ नी

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