Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 56
________________ ૩૯ निर्माण तेजसकार्मणवज्रदुःस्वरसुस्वरसाताऽसातान्यतरोऽन्त्यान्त - सुभगादेययशो ऽन्यतर वेदनीयत्रसत्रिकपञ्चेन्द्रियनरगत्यायुर्जिनोच्चः । ९. मिथ्यात्वगुणस्थाने – जिननाम, आहारकद्विक- आहारकशरीर अने आहारक अंगोपांग, मिश्रमोहनीय अने समकित - मोहनीय ए पांव सिवाय ११७ प्रकृतिओ उदयमां होय छे । २. सास्वादन गुणस्थानमां-सूक्ष्मत्रिक-सूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण, आतप, मिथ्यात्व अने नरकानुपूर्वी सिवाय १११ प्रकृतिओ उदयमां होय । ३. मिश्र गुणस्थानमां- अनंतानुबंधिकषाय- क्रोध, माया अने लोभ, स्थावर, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चडरिंद्रिय अने तिर्यचानुपूर्वी मनुष्यानुपूर्वी अने देवानुपूर्वी त्रण आनुपूर्वी रहित अने मिश्रमोहनीय सहित १०० प्रकृतिओ उदयमां होय । मान, · मान, ४. अविरत गुणस्थानमां- मिश्रमोहनीयरद्दिन समकित मोहनीय अने चार आनुपूर्वी सहित १०४ प्रकृतिओ उदयमां होय । ५. देशविरत गुणस्थान मां- अप्रत्याख्यानीय क्रोध, माया अने लोभ ४, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यचानुपूर्वी, वैक्रियद्विकवैक्रियशरीर अने वैक्रिय अंगोपांग, देवत्रिक - देवगति, देवानु. पूर्वी अने देवायुष्य, नरकत्रिक - नरकगति, नरकानुपूर्वी अने नरकायुष्य, दौर्भाग्य अने अनादेयद्विक- अनादेय अने अपयश ए सत्तर विना ८७ प्रकृतिओ उदयमां होय | ६. प्रमत्तगुणस्थाने - तिर्यंचगति, तिर्यचायुष्य, नीचगोत्र,

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