Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 48
________________ रहित १८ नो बध होय । त्यारपछी लोम जवाथी १७ नो बंध सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानके होय । हवे सूक्ष्मसंपरायने अंते दर्शनचतुष्क-चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यायज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्या तराय, उच्चगोत्र अने जशनामकर्म ए सोल प्रकृतिनो अंत थवाथी उपशांतमोह, क्षीणमोह अने सयोगी ए त्रण गुणस्थाने एक सातावेदनीयनो बध होय, पछी सयोगी गुणस्थानने अंते सातावेदनीयना बंधनो अंत थाय छे. पछी आत्मा अबंध रहे छे । हवे नरकगतिमां बधस्वामित्व कहे छे८८. अनन्त्ये नरके सुरक्रियाहारकद्विकदेवायुनरकसूक्ष्म विकलत्रिकैकेन्द्रियस्थावराऽऽतपा न । रत्नप्रभा आदि त्रण नरकमां देवद्विक, वैक्रियद्विक, आहारकद्विक, देवायुष्य, नरकत्रिक, सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक, एकेंद्रिय. स्थावर अने आतप ए ओगणीश प्रकृति विना शेष १०१ प्रकृति ओधे बधमां होय । ८९. नरकोऽजिनो मिथ्यात्वे । मिथ्यात्वगुणस्थानमा जिननाम विना १०० नो बध होय । ९०. अनपुंमिथ्यात्वहुण्डसेवातः सास्वादने । ...

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