Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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सास्वादन गुणस्थानमा नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, हुंड अने सेवात ए विना ९६ बधमां होय । ९१. अनन्तमध्याकृतिसंहननाऽशुभगमनीचस्त्रीदौर्भाग्य
स्त्यानगृद्धित्रिकोद्योततिर्यद्विकतिर्यग्नरायुष्को [ नरौदारिकद्विकऋषभो] मिश्रे । मिश्रगुणस्थानमा अनंतानुबधिवतुष्क, न्यग्रोध, सादि, वामन अने कुब्ज ए चार संस्थान, ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच अने कीलिका ए चार संघयण, अशुभविहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दौर्भाग्य, दुःस्वर, अनादेय, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, थीण द्धि, उद्योत, तिर्यचद्विक नियंचनुं आयुष्य अने मनुष्यनु आयुष्य ए छब्बीश प्रकृति विना ७० बंधाय । ९२. सजिननरायुष्कोऽयते ।
अविरत सम्यक्त्वगुणस्थानमा जिननाम अने मनुष्यायुष्य सहित ९२ प्रकृति बधाय । ९३. पङ्कातो न तीर्थम् ।
पंकप्रभा आदि त्रण नरकमां तीर्थ करनामनो बध न होय तेथी त्यां मोघे १००, मिथ्यात्वे १००, सास्वादने ९६, मिश्रे ७०, सम्यक्त्वे ७१, बधमां होय । ९४. माघवत्यां नरायुः ।
सातमी नरकमां मनुष्यायुष्यनो पण बध न होय तेथी त्यां ओघे ९९ बंधाय ।

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