Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 47
________________ 30 दृष्टिगुणस्थानां बधाय । अविरत - गुणस्थानने अंते वज्रऋपभनाराच संघयण, नरत्रिक- मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी अने मनुष्यायुष्य, अप्रत्याख्यानी चार कषाय, अने औदारिकद्विकऔदारिकशरीर अने औदारिकअंगोपांग ए दस प्रकृतिओनो अंत थाथी ए विना देशविरतगुणस्थानमां सडसठ (६७) बधाय । देश विरतने अंते प्रत्याख्यानावरण चार कषायनो अंत थाथी ए विना प्रमत्तगुणस्थानमा ६३ बंधाय । प्रमत्तने अंने शोक, अरति, अस्थिर द्विक-अस्थिर अने अशुभनाम, अपजश अने असातावेदनीय ए छ प्रकृतिओनो अंत थवाथी ए छ प्रकृति रहित अप्रमत्तगुणस्थानम आहारकद्विक सहित ५८ जो आयुष्य बधाय तो ५९. बंधाय । अपूर्वकरणगुणस्थानना कालना सात भाग करवा, तेमां प्रथमसप्तमभागमां देवायुष्य - रहित ५८ बंधा । प्रथमसप्तमभागना अंतमां निद्राद्विकनो अंत थवाथी, बीजा, त्रीजा, चोथा, पांचमा अने छट्टा सप्तमभागमां ५६ बधाय । छट्ठा सप्तमभागने अंते देवद्विक, पंचेंद्रियजाति, शुभविहायोगति, सनव-त्रल, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर अने आदेय, वैक्रिय, आहारक, तेजस अने आहारक अंगोपांग, समचतुरस्र, निर्माण, जिननाम, वर्ण-गंधरस-स्पर्शनाम, अगुरुलघु, उपघात, पराघात अने उच्छ्रबास ए तीस प्रकृतिओनो अंत थवाथी सातमा सप्तमभागमां २६ बंधाय । सातमा सप्तमभागना अंते हास्य, रति, कुत्सा अने भयनो व्यवच्छेद थवाथी अनिवृत्तिबादरना पांच भाग छे तेना प्रथम भागमा २२ बंधाय । बोजा भागमा पुरुषवेदरहित २१, बीजे भागे अंत्य-संज्वलन क्रोध विना २०, चोथे भागे संज्वलन मान रहित १९, अने पांचमे भागे संज्वलन माया

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