Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 44
________________ २७ हवे कर्मबंधना हेतुओ कहे छे८२. मिथ्यात्वा विरतिकषाययोगा बन्धहेतवः । मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योग ए चार कर्मबंधना हेतुओ छे. हवे गुणस्थानोमां बंधना मूलहेतुओने विचारे छे८३. एक-चतुः पश्च - त्रिगुणेषु चतुस्त्रिद्वयेकप्रत्ययो बन्धः । एक प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानमां-मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योग ए चार बंध हेतुओ होय छे; सास्वादन, मिश्र, अविरत अने देशविरत ए चार गुणस्थानोमां- अविरति, कषाय, अने योग ए त्रण बंध हेतुओ होय छे; प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादर अने सूक्ष्म संपराय ए पांच गुणस्थानोमां - कषाय अने योग ए बे बंध हेतुओ होय छे अने उपशांत मोह, क्षीणमोह भने सयोगिकेवली ए त्रण गुणस्थानोमां एक योग ज बंध हेतु छे. ८४. अभिग्रहेतराभिनिवेश संशयानाभोगज - मनइन्द्रियाsनियम - षड्जीववध - कषायनोकषाय - सत्यमन आद्या अजिनाहारक द्विकबन्धहेतवः । अभिग्रहिक, अनाभिग्रहिक, अभिनिवेशिक, सांशयिक अने अनाभोग ए पांच मिथ्यात्व; मन अने पांच इंद्रियोनो असंयम तथा पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पति अने त्रस जीवोनी हिंसा ए बार अविरति अनंतानुबंधि क्रोध विगेरे सोल कषाय तथा हास्यादि छ अने त्रण वेद ए नव नोकषाय, एम पचीस कषायः सत्यमन आदि पंदर योग एम सत्तावन जिन

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