Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ __ हवे कायद्वारमा अल्पबहुत्व जणावे छे७०. त्रसस्तोकाग्न्यसङ्ख्यपृथ्व्यब्वाय्वधिकवृक्षाऽनन्तगुणाः। ___सकाय थोडा, तेथी अग्निकाय असंख्यातगुणा, तेथी पृथ्वीकाय विशेष अधिक, तेथी अप्काय विशेष अधिक, तेथी वायुकाय विशेष अधिक अने तेथी वनस्पतिकाय अनंतगुणा होय छे. हवे योगद्वारमा अल्पबहुत्व जणावे छे७१. (मनोवाक्काययोगवन्तः) स्तोकाऽस. ख्याऽनन्त गुणाः । मनोयोगवाला थोडा छे, तेथी वचनयोगवाला असंख्यातगुणा अने काययोगवाला तेथी अनंतगुणा होय छे. हवे वेदद्वारमा अल्पबहुत्व कहे छे७२. (पुंस्त्रिक्लीवाः) स्तोकसङ्ख्याऽनन्तगुणाः । पुरुषो थोडा. तेथी स्त्रिओ संख्यातगुण तेथी नपुंसक अनंतगुणा छे. हवे कषायद्वारमा अल्पबहुत्व कहे छे७३. मानि-क्रोधि-मायि-लोभिनो अधिकाः (क्रमेण) । मानी थोडा, तेथी क्रोधी विशेष अधिक, तेथी मायी विशेष अधिक अने तेथी लोभी विशेष अधिक होय छे. हवे शानद्वारमा अल्पबहुत्व जणावे छे७४. मनोज्ञानस्तोकाऽवध्यऽसङ्ख्यमतिश्रुतसमाधिकविभ ङ्गाऽसङ्ख्यकेवल्यनन्तमतिश्रुताऽज्ञानसमाऽनन्तगुणाः।

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98