Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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वायुकायम पहेली त्रण लेश्या. यथाख्यात, सूक्ष्मसंपरायचारित्र, केवलज्ञान अने केवलदर्शनमां शुक्ललेश्या. शेष-बाकी देवगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, पंचेंद्रिय, त्रसकाय, त्रण योग, त्रण वेद, चार कपाय, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, मतिजज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभ'गज्ञान, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, देशविरत, अविरत, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, भव्य, अभव्य क्षायिक, क्षायोपशमिक, औपशमिक, सास्वादन, मिश्र, मिथ्यात्व, संज्ञी, आहारक अने अनाहारक ए एकतालीश मार्गणामां छ लेश्या होय छे.
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हवे मार्गणास्थानोमां पोताना स्थाननी अपेक्षाए अल्पबहुत्व प्ररूपे छे
६८. ( नर-नारक - देव - तिर्यञ्चः ) स्तोकाऽसङ्ख्यद्विकाऽनन्तगुणाः ।
मनुष्यो, नारकी देवता अने तिर्यंचोथी थोडा होय छे. तेथी नारकी असंख्यातगुण तेथी देवता असंख्यातगुणा अने तेथी तिर्यचो अनंतगुण होय छे.
हवे इंद्रियद्वारमां अल्पबहुत्व कहे छे
६९. पञ्चचतुस्त्रिद्वयेकाक्षाः ) स्तोकाधिकत्रयाऽनन्तगुणाः ।
पंचेंद्रिय थोडा, तेथी चउरिंद्रिय विशेषाधिक, तेथी बेइंद्रिय विशेषाधिक अने तेथी एकेंद्रिय अनंतगुण होय छे

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