Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 39
________________ अचक्षुदर्शन एम चार उपयोग. एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने स्थावरमां ते चार चक्षुदर्शन रहित त्रण उपयोग. त्रण अज्ञान-मतिअज्ञाल, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान, अभव्य, मिथ्यात्व अने सास्वादनमां त्रण अज्ञान अने बे दर्शन-चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शन एम पांच उपयोग. केवल द्वि कमां केवलज्ञान अने केवलदर्शन एम बे उपयोग. क्षायिक सम्यक्त्व अने यथाख्यात. चारित्रमा अज्ञानत्रिक-मति प्रज्ञाज, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान विना नव उपयोग. देशविरतमा त्रण दर्शन-चक्षु अचक्षु अने अवधिदर्शन अने त्रण ज्ञान-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान एम छ उपयोग. मिश्रदृष्टिमां तेज त्रण दर्शन अने त्रण ज्ञान अज्ञानसहित होय. अनाहारमा चक्षुदर्शन अने मनःपर्यायज्ञान विना दस उपयोग ज्ञान चतुष्क-म तज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान, अने मनःपर्यायज्ञान, संयम चतुष्क-सामायिक चारित्र, छे दोषस्थापनीय, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपरा य वारित्र, उप. शमसमकित, वेदक-क्षायोपरामिकसमकित अने अवधिदर्शनने विषे ज्ञानचतुष्क-मतिक्षान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्यायज्ञान अने दर्शनत्रिक-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अने अवधि दर्शन एम सात उपयोग होय. हवे मार्गणास्थानोमा ले३२॥ जगावे छे६७. एकाक्षासज्ञिभूदकवृक्षे नारकविकलानिवाते यथा ख्यातसूक्ष्म-केवलद्विके शेषे चतुस्त्रिशुक्लषड्लेश्याः। ___ एकेंद्रिय, असंज्ञी, पृथ्वीकाय, अप्काय अने वनस्पतिकायमां प्रथम चार लेश्या. नारकी, विकलेंद्रिय, अग्निकाय अने

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