Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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रिककार्मण - समनोवचश्चतुष्कौदारिक - सवैक्रिय
सवैक्रियद्विक-सकामणौदारिकमिश्रा योगाः । अनाहारमार्गणामां कार्मणकाययोग मनुष्यगति, पंचेंद्रियजाति, त्रसकाय, काययोग, अचक्षुदर्शन, पुरुषवेद,नपुंसकवेद,क्रोध,मान, माया, लोभ, क्षायिकसमकिती, क्षायोपशमिकसमकिती संज्ञी,छ लेश्या,आहारक,भव्य,मतिज्ञान,श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने अवधिदर्शन मार्गणाओमां पंदर योग. तिर्यचगति, स्त्रीवेद, अविरत, सास्वादनसम्यक्त्व, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान, उपशमसम्यक्त्व, अभव्य अने मिथ्यात्वमा आहारकद्विक-आहारक अने आहारकमिश्रविना तेर योग. देवगति अने नरकगतिमां ए तेर औदारिकद्विक-औदारिक अने औदारिकमिश्रविना अगियार योग. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय अने वनस्पतिकायमां कार्मण अने औदारिकद्विक एम त्रण योग. एकेंद्रिय अने वायुकायमा पूर्वोक्त त्रण अने वैक्रिय द्विक एम पांच योग. असं शिमां ते पाँच असत्यामृषारूप अंत्यवचनयोग सहित छ योग. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिद्रियमां ते छ वैक्रियद्विकरहित चार योग. मनोयोग, वचनयोग, सामायिक, छेदोपस्थापनीय चारित्र, चक्षुदर्शन अने मनःपर्यायज्ञानमां कार्मण अने औदारिकमिश्ररहित बाकी तेर योग. केवलज्ञान अने केवलदर्शनमा प्रथम अने अंत्य मनोयोग अने वचनयोग सहित औदारिक अने कार्मणकाययोग एम सात योग. परिहारविशुद्धि अने सूक्ष्मसंपरायचारित्रमा मनना अने वचनना चार चार योग सहित औदारिककाययोग एम नव योग. मिश्रसमकितमां ते नव योग वैक्रियकाययोग सहित दश योग. देशविरतमां

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