Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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६१. स्त्रीनरपश्चाक्षे चत्वारोऽन्त्याः ।
स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी अने पंचेंद्रिय ए त्रणने विषे छेल्ला असंज्ञी पंचेंद्रिय अने संज्ञी पंचेंद्रिय ए बे अपर्याप्ता अने पर्याप्ता एम चार जीवस्थान होय । ६३. अनाहारेऽपर्याप्तषट्कं ससद्वयम् ।
अनाहारीने विषे बे संज्ञीसहित छ अपर्याप्ता एटले संज्ञी अपर्याप्तो अने पर्याप्तो, सूक्ष्म एकेंद्रिय, बादर एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने असंशी पंचेंद्रिय ए छ अपर्याप्ता एम आठ जीवस्थान होय ।
६३. असूक्ष्मापर्याप्तं सास्वादने ।
सास्वादन समकितीमां सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ता विना पूर्वोक्त सात भेद होय ।
हवे मार्गणास्थानोमां गुणस्थान कहे छे६४. तिरश्चि सुरनारके नरसज्ञिपञ्चेन्द्रियभव्यत्रसे एकविकलभूदकवृक्षे तेजोवाय्वभव्ये वेदत्रिकषाये लोभेsयतेऽज्ञानत्रिके चक्षुरचक्षुषोर्यथाख्याते मनोज्ञाने सामायिकच्छेदे परिहारे केवलद्विके मतिश्रुतावधिद्विक औपशमिके वेदके क्षायिके मिथ्यात्वत्रिके देशसूक्ष्मसम्पराये योगाहारशुक्ललेश्यास्वसञ्ज्ञित्रिद्विलेश्यानाहारे

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