Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 31
________________ १४ ज्ञान-८-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिशान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान अने विभंग ज्ञान । संयम-७-सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात, देशविरति अने अविरति । दर्शन-४-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन । लेश्या-६-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजो लेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या । भव्य-२-भव्य अने अभव्य । सम्यक्त्व-६-औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, सास्वा दन, मिश्र अने मिथ्यात्व । संज्ञि-२-संज्ञी अने असंज्ञी । आहार-२-आहार अने अणाहार । __ हवे मार्गणाने विष जीवस्थान कहे छे५०. सुरनरकविभङ्गमति श्रुतावधिज्ञानदर्शनक्षायिकौपशमि कक्षायोपशमिकसज्ञिपद्मशुक्लासु पर्याप्ताऽपर्याप्तसज्ञिनौ । देवगति, नरकगति, विभंगज्ञान, मतिज्ञान, भुतज्ञान, अवधिज्ञान, अवधिदर्शन; क्षायिक, औपशमिक अने क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, संज्ञि, पद्मलेश्या भने शुक्ललेश्या ए तेर

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