Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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४४. सज्ञिपर्याप्ताऽपर्याप्ते षड् । ___संज्ञि पर्याप्ता अने अपर्याप्ता ए बेने विषे छ लेश्या होय । ४५. बादराऽपर्याप्ते प्रथमाश्चतस्रः ।
अपर्याप्त बादर एकेंद्रियने विषे पहेली चार लेश्या होय । ४६. शेषेषु तिस्रः ।
पर्याप्त अने अपर्याप्त संज्ञिपंचेंद्रिय अने अपर्याप्त बादर एकेंद्रिय वर्जीने शेष-अपर्याप्त अने पर्याप्त सूक्ष्म एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय, असंज्ञिपंचेंद्रिय अने बादरपर्याप्त एकेंद्रिय ए अगीयार जीस्थानमां कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण लेश्या होय छे ।
। लेश्याधिकार समाप्त ।
हवे १४ जीवस्थानमां मूल प्रकृतिना बंध, उदय, उदीरणा अने सत्ता कहे छे४७. सप्ताष्ट बन्धोदीरणे सत्ताउदयेऽष्टौ शेषेषु
(त्रयोदशसु)।
संज्ञि पर्याप्तने वर्जीने तेर जीवस्थानमां सात अथवा आठ कर्मनो बंध, तथा सात अथवा आठ कर्मनी उदीरणा होय, तथा सत्ता अने उदयमां आठेय कर्म होय छे। ४८. सप्ताष्टषडेकबन्धोऽष्टसप्तचतुरुदयसत्तः सप्ताष्टषट्
पञ्चद्वयोदीरणः सज्ञिपर्याप्तः।

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