Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 27
________________ १० पर्याप्त सूक्ष्म एकेंद्रियने विषे एकज औदारिककाययोग होय छ। बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने असंशिपंचेंद्रिय ए चार पर्याप्ताने विषे अंत्य-चोथी भाषा सहित औदारिक एटले बे योग होय छ। बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताने विषे वैक्रिय अने वैकियमिश्र सहित औदारिक योग होय एटले औदारिक, वैक्रिय अने वैक्रियमिश्र एम प्रण योग होय छे । । योगाधिकार समाप्त । हवे उपयोगना भेद कहे छे३८. ज्ञानाऽज्ञानदर्शनानि पञ्च-त्रि-चतुर्थोपयोगाः । जीवनो बोधरूप व्यापार तेने उपयोग कहे छे, तेना बार भेद छे पांच ज्ञान-मतिक्षान, श्रुतज्ञाम, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान अने केवलज्ञान. त्रण अज्ञान-मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान अने घिभंगशान. अमे चार दर्शन-चक्षुदर्शन, अवक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन. हवे जीवस्थानोमां उपयोग कहे - ३९. पर्याप्तसज्ञिनि द्वादश ।

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