Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 25
________________ हवे १४ जीवस्थानो जणावे छे२६. एकेन्द्रियसूक्ष्मबादर-पञ्चेन्द्रियसञ्झ्यसज्ञि-द्वि-त्रि चतुरिन्द्रियाः पर्याप्ताऽपर्याप्ता जीवाः । सूक्ष्मएकेंद्रिय,बादरएकेंद्रिय संक्षीपंचेंद्रिय, असंज्ञीपचेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चरिंद्रिय ए सात प्रकारना जीवो पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम चउद जीवना स्थानको-भेदो छ । हवे जीवस्थानोमा गुणस्थानको कहे छे२७. अपर्याप्ते बादरासज्ञि-द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिये प्रथम द्वितीये । अपर्याप्त बादर एकेंद्रिय, अपर्याप्त असंही पंचेंद्रिय, अपर्याप्त बेइंद्रिय, तेई द्रय अने चउरिंद्रिय जीवने विषे पहेलु अने बीजु गुणस्थान होय छ । २८. सङ्ग्यपर्याप्ते साऽयते । अपर्याप्त संझीपंचेंद्रियने विषे अयत-अविरतसहित एटले पहेलु बीजु अने चोथु एमत्रण गुणस्थान होय छ । २९. सज्ञिपर्याप्ते समानि । संज्ञी-पर्याप्तने विषे सर्व गुणस्थानक होय छे । ३०. शेषेषु मिथ्यात्वम् । शेष-सूक्ष्म अपर्याप्ता, सूक्ष्म पर्याप्ता, पर्याप्त बादर एकेद्रिय, पर्याप्त बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिंद्रिय अने पर्याप्त असंहिंपचेंद्रिय ए सातने विषे एक ज मिथ्यात्व-गुणस्थानक होय छे ।

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