Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 20
________________ हवे वेदनीयकर्मना भेद प्ररूपे छे५. सदसवेद्य । ___सातावेदनीर अने मसाताबेदनीय ए बे वेदनीयकर्मना मेदो छे. हवे मोहनीयकर्म ना भेद निरूपे छे६. सम्यक्त्व-मिथ्यात्व-तदुभयानि दर्शनमोहनीयम् । कषाया-अनन्ताऽप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानावरण-सज्वलनाख्याः प्रत्येकं क्रोध-मान-माया-लोभाः, नोकषाया-हास्य-रत्य-रति-शोक-भय-जुगुप्साः स्त्रीपुंनपुंसकवेदाः चारित्रमोहनीयम् ।। सम्यक्त्वमोहनीय, मिथ्यात्वमोहनीय अने तदुभयमिश्रमोहनीय ए त्रण दर्शनमोहनीय छे. ए साची श्रद्धाने अटकावे छे. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया अने लोभ तथा अप्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया अने लोभ तथा प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया अने लोभ तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया अने लोभ. ए सोल कषाय छे. तथा हास्य, रति, अरति, शोक, भय अने दुगुंछाजुगुप्सा तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेद ए नव नोकषाय छे. एवं पच्चीस चारित्रमोहनीयकर्मना भेदो छे. ए सद्वर्तनने अटकावे छे.

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