Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 18
________________ णमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमोद्धारकाऽऽचार्यश्री आनन्दसागरसूरीश्वरप्रणीतं कर्मार्थसूत्रम् नत्वा नम्रसुराधीशं कर्मक्षयविधिप्रदम् । सूत्रैस्तदुक्तः कर्मार्थो वर्ण्यते तद्रुचिस्मृतः ॥ १ ॥ नमी रह्या छे सुराधीशो-इंद्रो जेने, तेमज कर्मक्षयनी विधि-क्रियाने बतावनार, एवा ( जिनेश्वरदेव ) ने नमस्कार करीने तेमणे प्ररूपेल कर्मपदार्थ सूत्रो द्वारा वर्णवाय छे। हवे कर्मना मूलभेदोने जणावे छे१. ज्ञानदृष्ट्यावरणवेदमोहाऽऽयुर्नामगोत्राऽन्तराया मूल प्रकृतयः । आत्माना शुद्ध स्वरूपने आच्छादित करनार एकप्रकार पुद्गल ते कर्म छे. तेना आठ प्रकार छे- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेद-वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र अने अंतराय । तेमां ज्ञान एटले विशेषबोध तेने आवरे ते ज्ञानावरण, दर्शन एटले सामान्यबोध तेने आवरे ते दर्शनावरण, सुख-दुःखनो अनुभव करावे ते वेदनीय, स्त्रीपुत्रादिकमां ममत्व करावे ते मोहनीय, जीवने परभवमां जतां अटकावे ते आयुष्य, गति-जाति-शरीर आदिने करे ते नामकर्म,

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