Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
View full book text
________________
१९. गुरु-लघु - मृदु - खर-शीतो-ष्ण-स्निग्ध-रूक्षाः
स्पर्शाः । २०. शुभा-ऽशुभौ खगमौ । २१. अगुरुलघू-पघात-पराघातो-च्छ्वासा-ऽऽतपोद्योत -
जिन-निर्माणानि प्रत्येकाः प्रकृतयः ।। २२. त्रस-बादर-पर्याप्त प्रत्येक-स्थिर- शुभ - सुभग -
सुस्वरा-ऽऽदेय-यशःसेतरे त्रसस्थावरदशके । गति-मरगति, नारकगति, देवगति अने तिर्यंचगति तथा आनुपूर्षी-नरानुपूर्वी, नारकानुपूर्वी, देवानुपूर्वी अने
तिर्यंचानुपूर्वी । जाति-एकेन्द्रियजाति, बेइन्द्रियजाति, तेइन्द्रियजाति,
चउरिन्द्रियजाति अने पंचेंद्रियजाति । शरीर-औदारिकशरीर, वैक्रियशरीर, आहारकशरीर,
तैजसशरीर अने कार्मणशरीर. तथा संघातन-औदारिकसंघातन, वैक्रियसंघातन, आहारक
संघातन, तैजससंघातन अने कार्मणसंघातन । उपांग-पहेला त्रण शरीरना उपांगो अर्थात् औदारिको
पांग, वैक्रियोपांग अने आहारकोपांग । बंधन-औदारिकऔदारिकबंधन, औदरिकतैजसबंधन, औदा
रिककामणबंधन अने औदारिकतैजसकार्मणबंधन, नथा बैक्रियवैक्रियबंधन, वैक्रियतैजसबंधन, वैकियकार्मणबंधन. अने वैक्रियतैजसकार्मणबंधन; तथा

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98