Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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एवं मोहनीयकर्मना अट्ठावीस भेदो छे.
हवे आयुष्य कर्मना भेद बतावे छे८. नारक-तैर्यग्योन-मानुष-दैवानि । (आयूंषि)
नारकायुष्य, तिर्यंचायुष्य, मनुष्यायुष्य अने देवायुष्य ए चार आयुष्यकर्मना भेदो छे.
हवे नामकर्मना भेदो प्ररूपे छे९. नर-नरक-देव-तिर्यग्गत्यानुपूर्व्यः । १०. एक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्चेन्द्रिया जातयः । ११. औदारिक-वैक्रिया-ऽऽहारक-तैजस कार्मणानि
शरीर-सङ्घातनानि । १२. आदित्र्युपाङ्गानि । १३. स्वयुक्-तैजस-कार्मणयुक्-त्रिपरस्परबन्धनानि । १४. वज्रर्षभनाराच-र्षभनाराच - नाराचा- ऽर्धनाराच
कीलिका-सेवार्तसंहननानि । १५. समचतुरस्र-न्यग्रोध-सादि-कुब्ज - वामन - हुण्डानि
संस्थानानि । १६. कृष्ण-नील-रक्त-हरिद्र-सिता वर्णाः । १७, सुरभ्य-सुरभी गन्धौ । १८. तिक्त-कटु-कषाया-ऽम्ल-मधुरा रसाः ।

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