Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 12
________________ लिंबडी मुकामे दीक्षित थया तेमनी वडी दीक्षा उपस्थापना मारा पू० गुरुदेवश्रीना जणाव्या प्रमाणे (मुनिराजश्री कमलविजयजीनी पन्यास पदवीना दिवसे थइ हती ते अनुसार उपस्थापनानो दिवस १९४७ आषाढ सुदी ७ छे. बीजे वर्षे गुरुदेव कालधर्म पाम्या गुरुदेवना आदर्या अधूरा रहेला कार्यो पूरा करवानी जवाबदारी आवी, बीजी भणवानी पण, तैयार थवानी शासनना पवित्र ऋणने अदा करवानी आवी अनेक जवाबदारीओ विरहथी आवी. परन्तु गुरुना एकमात्र शिष्य होवा छता 'एके हजारानी' उक्ति ने सार्थक करवा पोतानी उपर आवेली ए जवाबदारीओने पूर्ण करवा कटिबद्ध बन्या स्वयं तैयार थवानी साथोसाथ शासन, आगम अने आपणा पूर्वजोनी महान् भव्य उज्वल परंपराओनी पण रक्षा करीने तेने आगल वधारवानी तैयारी करवा लाग्या. सं. १९५२ : इतिहासनी कलम आगल वधे छे दीक्षित अवस्थाने छ8 वर्ष चाली रा छे गुरुना वियोगने चार वर्ष थवा आव्या छे पेटलादना संघनी भावभरी विनंति स्वीकारी त्यां चातुर्मास पधार्या दीक्षित पितानी तबीयत अस्वस्थ बने छे गंभीर बने छे एक दिवसनी उषा एवी प्रगटे छे. पुत्रना हस्ते अंतिम आराधना स्वीकारी पिता स्वर्गे सिधावे छे आ आघातने पण शरीरनी नश्वरता जाणी पचावी जाय छे अने ते वखते चाली रहेला सांवत्सरिक पर्वनी आराधना क्यारे करवी ? विवादमा प्रथम तिथिनी स्थापना पछी आराधना (१) पर्वतिथिनो क्षय न थइ शके (२) अने एक दिवस माटे वषो जुना संघ मान्य पंचांग छोडी बीजु पंचांग मान्य करवु वली पार्छ असल पंचांग मान्य करवु आ वात नैतिक भूमिका उपर पण व्याजबी नथी (३) पोतानी विचक्षण बुद्धिप्रभाथी

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