________________
प्रस्तावना] करवान कहे छै, कोई इशानकोणमां, ज्यारे बीजानो वायव्यकोणमां ध्वज घर करवानो मत प्रदर्शित करे छे.
ध्वजदैर्घ्य-विस्तार--- प्रासादपादविस्तार--स्तदर्धाय॑शितः क्वचित् । धाम्नो द्विगुणदीर्घः स्यात् ,सार्थो वा तत्समो ध्वजः॥ द्विहस्तविस्तरो वा स्व-भूमि माष्टिं यथापि वा। क्वचिन् मते तदर्थों वा, यथा प्राप्त्याऽथवोदितः॥ स्वदैय॑षोडशांशेन, क्वचिदुक्तः स विस्तरात् । सर्वार्थशान्तये शुक्लः, काम्याथै दिक्पतिप्रभः । स्ववाहनांकितश्चो, वे किंकणीचामरैयुतः । स्वदेवरूपकैश्चित्रः स्वशक्त्या शोभितः क्वचित् ॥”
अर्थ-वजानो विस्तार प्रासाइभानना चतुर्थीशे मानेलो छ, ज्यारे कोइ मतमां तेनो अर्ध अर्थात् प्रासादना अष्टमांश प्रमाणे ध्वजानो विस्तार कह्यो छे, ध्वजनी लंबाई प्रासादथी बमणी, दोही अथवा प्रासाद समान पण कोइना मतमा मानेली छे. वली बीजी रीते ध्वजनो विस्तार बे हाथनो अने लंबाई दंडने नीचे पहोंचे एवडी करवी. कोइनो मत छे के लंबाई पहोलाई उक्त लंबाईपहोलाईथी अडधी करवी. अथवा तो जेवो मले एवो ज ध्वज चढाववो. ज्यारे कोइना मते ध्वज विस्तार पोतानी लंबाइना सोलमा भागनो पण कहेल छे __सर्व कामसाधक तथा शांतिकारक श्वेत ध्वज कहेल छे, अमुक कामनी सिद्धिने माटे ते दिशाना दिक्पालना वर्णनो ध्वज चढाववो, ध्वजना उपरना भागमां ते देवना वाहन बडे लांछित करवो के जे देवना प्रासाद उपर ते चढवानो होय, वली तेना छेडाने घूघरीओथी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org