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कोयला बने सोनामुहर 'गुरुदेव, जब मैंने श्रुतदेवी को रुबरु देखा...
ओह...कैसी उनकी शोभा थी! सिर पर रत्नजड़ित मुकुट था। उज्जवल कांतिमय देहप्रभा थी। उनके बायें हाथ में पुस्तक थी। दाहिने हाथ में अक्षमाला थी। एक हाथ में वीणा धारण किये हुए थी। और एक हाथ मुझ पर आशीर्वाद बरसा रहा था। उन माँ की कमल जैसी आँखों में स्नेह का-कृपा का सागर उमड़ रहा था... और उनकी वाणी की मधुरता तो अद्भुत थी...गुरुदेव, उसका तो मैं बिल्कुल बयान ही नहीं कर सकता!' 'वत्स... तेरा यह परम सौभाग्य है कि तू देवी के प्रत्यक्ष दर्शन पा सका।'
सोमचन्द्रमुनि ने देवी सरस्वती की कृपा से अनेक धर्मग्रन्थों का सर्जन करना चालू किया। एक पल भी वे आलस या सुस्ती नहीं रखते हैं...फिजूल और व्यर्थ की बातों में वे तनिक भी समय बरबाद नहीं करते हैं... दिन-रात एक ही कार्य! साहित्य का सर्जन! ग्रन्थों का निर्माण!
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