Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १४९ जान सकती हैं। कृपया मुझे राजा कुमारपाल के पूर्वजन्म और आगामी जन्म की बात बताइये।' देवी ने वहाँ गुरुदेव को कुमारपाल का पूर्वजन्म और आगामी जन्म बताया। देवी अदृश्य हो गई। गुरुदेव वापस पाटन लौटे। तीन दिन के उपवास का पारणा किया। विश्राम किया । स्वस्थ होकर अपने आसन पर बिराजमान हुए। कुमारपाल ने 'मत्थएण वंदामि' कहते हुए उपाश्रय में प्रवेश किया। गुरुदेव को वंदना करके वे विनयपूर्वक गुरुदेव के चरणों में बैठे। गुरुदेव ने सस्मित धर्मलाभ का आशीर्वाद देते हुए कहा : 'राजन् तुम्हारे सवालों के जवाब मिल गये हैं। देवी त्रिभुवनस्वामिनी ने कृपा की और तुम्हारे प्रश्नों के जवाब दिये। समीप में बैठे हुए यशश्चन्द्र मुनि ने कहा : 'महाराजा, गुरुदेव ने सरस्वती नदी के किनारे पर बैठकर तीन उपवास किये और सूरिमंत्र की साधना की। तीन दिन और तीन रात अप्रमत्त होकर एक आसन पर बैठकर जाप ध्यान किया।' कुमारपाल का मन मयूर नाच उठा। वे विभोर होकर बोले : 'गुरुदेव, मेरे सवालों के जवाब लेने के लिए आपने इतनी कठोर साधना की। आपका यह अकारण वात्सल्य ही मुझे भावविभोर बना डालता है।' कुमारपाल की आँखों में हर्षाश्रु उमड़ आये। गुरुदेव ने राजा के मस्तक पर हाथ फेरते हुए कहा : 'कुमारपाल, तेरे सवाल के साथ मैं और महामंत्री उदयन भी तो सिमटे हुए हैं। इसलिए प्रत्युत्तर खोजने की उत्कण्ठा तो मेरे मन में भी थी ही। जो उत्तर मुझे देवी से प्राप्त हुए... मैं तुझे कहता हूँ।' कुमारपाल और अन्य मुनिवर स्वस्थ होकर, एकाग्र बनकर बैठ गये। गुरुदेव ने कथा का प्रारम्भ किया। 'मालवा और गुजरात की सरहद पर एक ऊँचा पहाड़ था। उस पहाड़ की चोटी पर 'नरवीर' नाम का डाकू अपने चुनंदे साथियों के साथ रहता था। वैसे तो वह मेवाड़ के राजा जयकेशी का पुत्र था। पर नरवीर के गलत कार्यों से For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171