Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 170
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० सूरिदेव का स्वर्गवास - गुरुदेव ने अनशन किया । खाना-पीना बन्द कर दिया। - आँखें मूंदकर पद्मासनस्थ बनकर परमात्मा के ध्यान में निमग्न हो गये। - युवा वर्ग के नृत्य बन्द हो गये। - श्रावक-श्राविकाओं के रास थम गये । - गायकों के गीत-संगीत बन्द हो गये। - बिरुदावलियों के गायक मौन हो गये। - सर्वत्र खामोशी... नीरव चुप्पी छा गयी। - आचार्यदेव उत्कृष्ट धर्मध्यान में लीन हो गये। और उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। गुरुदेव का स्वर्गवास हुआ। - कुमारपाल बेहोश होकर जमीन पर ढेर हो गये। - जब वे होश में आये... उनके करुण रुदन ने समग्र पाटन को रुला दिया । राजा रोये... प्रजा रोयी... साधु-संन्यासी रोये... भोगी और संसारी रोये। संघ ने कीमती शिबिका-पालकी तैयार करवायी। __ श्रावकों ने गुरुदेव के शरीर को नहलाया। चंदन का लेप किया। श्वेत वस्त्रों में शरीर को लपेटा और शिबिका में बिराजित किया। पाटन के राजमार्ग पर से श्मशान यात्रा गुजरी। हजारों... लाखों... स्त्रीपुरुष श्मशान यात्रा में जुड़े।। - सूर्य भी फीका हो गया। - दिशाओं में शून्यावकाश छा गया । - चंदन की लकड़ियों से बनी चिता पर सूरीश्वरजी का पार्थिव देह रखा गया। महाराजा कुमारपाल ने चिता में अग्नि प्रदीप्त किया। आचार्य रामचन्द्रसूरिजी ने आँसू बहाते हुए गद्गद् स्वर में कहा : 'आज ज्ञान का सागर सूख गया । ज्ञानसत्र बन्द हो गया। पृथ्वी अज्ञान के अंधकार में डूब जाएगी। मिथ्यात्व के विषवृक्ष पनपेंगे। प्रभो... आपके बिना हम अनाथ हो गये। गुरुविरह की वेदना ने सभी को आक्रंद से आलोड़ित कर दिया। For Private And Personal Use Only

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