Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 169
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ सूरिदेव का स्वर्गवास आचार्यदेव श्रीहेमचन्द्रसूरिजी ने रामचन्द्रसूरि को विधिवत् अपना अनुगामी नियुक्त किया। चूंकि उनकी स्वयं की उम्र ८४ साल की हो चुकी थी। उन्हें अपना मृत्यु निकट के भविष्य में ही दिखता था। रामचन्द्रसूरि को उत्तराधिकारी बनाया गया, यह बात बालचन्द्र मुनि को तनिक भी सुहाई नहीं। गंदी राजनीति की हरकतें चालू हो गई। धर्म-साहित्य और संस्कार के मूल्य गौण हो गये। खटपट और सत्ता के जहर ने धार्मिक स्थानों पर अपना कब्जा जमा लिया। __ आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिजी जैसे ज्ञानयोगी थे वैसे ही वे चुस्त क्रियायोगी भी थे। उन्होंने अपने जीवन में ज्ञानक्रिया का समन्वय किया था। वे अक्सर छठ्ठअठ्ठम (दो उपवास-तीन उपवास) का तप करते रहते थे। __ मृत्यु का समय नजदीक जानकर उन्होंने तमाम साधुओं को अपने पास बुलाया। राजा कुमारपाल भी आ पहुँचे। पूरा जैन संघ एकत्र हो गया। - आचार्यदेव ने सभी के साथ क्षमापना की। - सभी को धर्म का उपदेश दिया। - महाराज कुमारपाल ने खड़े होकर गुरुदेव के चरणों में वंदना की और गद्गद् स्वर से कहा : 'प्रभो, श्रेष्ठ अन्तःपुर, समृद्ध राज्य और अनुमप दुनियावी सुख तो जनमजनम में मिल सकते हैं, पर आप जैसे सदगुरु का मिलना बड़ा मुश्किल है, दुर्लभ है। आपने मुझे केवल धर्म ही नहीं दिया है, अपितु मुझे जीवन भी दिया है। आपने मेरा कल्याण ही कल्याण किया है। आपने मेरे ऊपर अनन्त उपकार किये हैं... प्रभो! उन सब उपकारों का बदला मैं किस तरह चुका पाऊँगा? इस अगाध मोहसागर में डूबते हुए मुझे आपके अलावा दूसरा कौन बचाएगा? गुरुदेव, मैंने आपके चरणों की आराधना की है... उपासना की है। उस आराधना का यदि कुछ फल मुझे मिलना हो तो बस जन्मोजन्म तक आप ही के श्री चरणों का सानिध्य मिले। आप ही मेरे गुरुदेव बनें।' कुमारपाल छोटे बच्चे की भाँति बिलख पड़े। गुरुदेव की आँखें भी सजल हो उठीं। उन्होंने कहा : 'राजन! धीरज रखिये, मेरी मृत्यु के पश्चात तुम्हारी मृत्यु दूर नहीं है। मृत्यु के समय सभी जीवात्माओं के साथ क्षमापना करना। और मेरी तरह अनशन ले लेना। For Private And Personal Use Only

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